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________________ समझेगा, अपने जीवन के लिए उसकी आवश्यकता और उपयोगिता को महसूस करेगा, त्यों-त्यों यह सारा युग, सारा विश्व अन्ततः योग की ही शरण में आएगा। जहाँ दुनिया की सारी औषधियाँ निष्फल हो जाएँ, सारे मार्ग अवरुद्ध हो जाएँ, तब भी वहाँ एक मार्ग, एक औषधि बची हुई रहेगी। वह मार्ग, वह औषधि योग होगा। आज 'योगा' और ध्यान के नाम पर, भारतीय संत जिस कदर पूरे संसार में छाए हुए हैं, उतने शायद पिछले हजार सालों में भी न छा पाए होंगे। उनकी अगर कोई शक्ति है, उनके पास अगर कोई पगडण्डी है, जीवन की शुद्धि का कोई घाट है तो वह एकमात्र योग है। हमारी यह बदकिस्मती है कि जिस भारत में योग का जन्म हुआ, वहाँ के लोग संभवतः योग से जितने दूर हो गये, उतना शायद पूरा विश्व भी नहीं हुआ। ___ अगर भ्रष्टाचार है, आतंकवाद है, रोग है, अनीति या और भी किसी तरह की बुराई या बीमारी है तो मैं कहूँगा, वह इसलिए है क्योंकि भारत और भारतीय समाज अपने जीवन के साथ योग को व्यावहारिक तौर पर जोड़ नहीं पा रहा है। योग तो अपने आप में कल्पतरु वृक्ष की तरह है कि जो भी व्यक्ति उसके पास पहुंचे और उससे जो भी माँगना चाहे, वह माँग सकता है। योग तो अपने आप में चिन्तामणि रत्न की तरह है कि उसके पास जाओ और जाने मात्र से ही, उसकी एक किरण पाने मात्र से ही आदमी के मन की चिन्ताएँ दूर हो जाया करती हैं, तनाव और दिमाग के बोझ उतर जाया करते हैं। __ योग तो माँ का वह आँचल है जो हमेशा अपनी हर संतान के लिए खुला रहता है। माँ अपने पापी बेटे के लिए भी अपना आँचल खुला रखती है और अपने पुण्यशाली बेटे के लिए भी। पुण्यशाली आदमी को तो हर कोई अपने गले लगाना चाहेगा, पर क्या दुनिया में ऐसा कोई समाज, धर्म या पंथ है जो किसी पापी को, चोर को, व्यभिचारी को या गलत प्रवृत्ति में जकड़े जा चुके आदमी को भी शरण दे सके? हाँ, योग ही एक ऐसा मार्ग है जो सबके लिए शरणभूत है। यह तो शिव की तरह बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं ८७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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