________________
नहीं होती। छोटा होता है काम को छोटा समझना। पूर्ण होता है छोटे काम को भी पूर्णता से पूरा करना। महापुरुष तो अपना ईगो तोड़ने के लिए चलाकर छोटे-छोटे कार्य किया करते हैं। क्या आपको पता है कि महात्मा गाँधी, कभी-कभी हरिजनों की बस्ती में जाकर स्वयं सफाई का कार्य किया करते थे। रामकृष्ण परमहंस भी हरिजनों की बस्ती में जाकर झाडू लगाया करते थे और आप इस बात का इन्तजार करते हैं कि कोई हरिजन आए और आपके शौचालय की सफाई करके चला जाए। जब उस शौचालय का उपयोग आप करते हैं तो दूसरा क्यों उसकी सफाई करे? अपना खाना खाकर जूठी थाली ऐसे ही न छोड़ें। खाने के बाद थाली स्वयं धोकर रखें। ऐसा करने से दो फायदे हुए, एक तो काम का बँटवारा हो गया, दूसरा आपको जूठा बर्तन किसी
और से धुलवाने का दोष नहीं लगा। . __ मेरी बात शायद किसी को अखरेगी कि थाली भी हम स्वयं धोएँ। मुझ सरीखा व्यक्ति तो यह भी कहेगा कि यदि समाज में जीमनवारी हो रही है, तो अवश्य खाएँ पर यदि आपकी जूठा छोड़ने की आदत है तो न खाकर जाएँ। खाना खाने के बाद अपनी जूठी थाली अवश्य धोएँ। यदि आप अपनी थाली नहीं धो सकते तो खाना न खाएँ।
लोगों को लगेगा कि यह तो हमारे अपमान की बात है कि हम जूठी थाली धोएँ। पर मैं पूछना चाहूँगा कि सुबह-सुबह जब हम निवृत्ति के लिए जाते हैं तो हमारी बैठक कौन धोता है? जब हम हमारी बैठक स्वयं धोते हैं, तो खाने के बाद जूठी थाली क्यों नहीं धो सकते? इसमें कैसा अपमान? कैसी शर्म की बात? तबियत-बेतबियत होने पर ही हमें अपने काम दूसरों से करवाने चाहिए, बाकी तो स्वावलम्बन ही स्वस्थ सुन्दर जीवन की नींव है।
जीवन में व्यक्ति स्वावलम्बी बने और अपने कार्य स्वयं सम्पादित करे। जब आप छोटे बच्चे थे तब आपकी माँ आपके कपड़े धोती थी,
३८
कैसे जिएँ मधुर जीवन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org