________________
पहलू का साक्षी बन रहा हूँ। मैं यह देखने की कोशिश कर रहा हूँ कि नकारात्मकता के कहाँ, क्या और किस सीमा तक परिणाम पहुँचते हैं? जब भी कोई व्यक्ति किसी के प्रति एक बार नकारात्मक हो जाएगा तो उसके बाद उसके मन में उठने वाला हर विचार उस व्यक्ति के प्रति नकारात्मक होगा... नकारात्मक होगा.... नकारात्मक होगा। अगर कोई तीसरा व्यक्ति इस संदर्भ में संकेत भी देना चाहे तो वह संकेत उल्टा ही पड़ेगा। इसलिए क्योंकि उस पर नकारात्मकता हावी हो गई है। जब किसी पर नकारात्मकता हावी हो जाए तो उसे दिया गया ज्ञान, बंदर को दी जाने वाली सिखावन है।
नकारात्मकता को मैं शनि की संज्ञा दूंगा। जैसे शनि किसी पर हावी हो जाए, वह अपनी दुलत्ती मारे बगैर नहीं रहता, ऐसे ही नकारात्मकता है। जैसे शनि धनी को भी कंगाल बना देता है, ऐसे ही नकारात्मकता भी प्रेम, शांति सद्भावना, सम्मान और उम्मीदों के ताला लगा देती है। वह हावी हो जाती है कंगालियत क्रोध-आक्रोश की, वैर-वैमनस्य की, निराशा और अविश्वास की।
दो लोगों की नेगेटिविटी कभी भी हाथों को जोड़ेगी नहीं। वरन् परस्पर सटी हुई अंगुली को भी दुसरी अंगुली से दूर करेगी; वहीं दो लोगों की सकारात्मकता चाहे कितनी भी दूरी क्यों न हो, फिर भी सेतु का काम करेगी। वह दो रास्तों को भी जोड़ेगी, दो समाजों को भी जोड़ेगी, दो धर्मों, दो आदमियों को और दो दिलों को भी जोड़ेगी। सकारात्मकता सुई की तरह है, नकारात्मकता कैंची की तरह है। कैंची केवल काटती है, सुई कटे हुए को भी जोड़ती है।
कहते हैं, राम जब सेतु का निर्माण कर रहे थे, तब लंका में इस बात को लेकर खौफ पैदा हो गया कि जिस व्यक्ति के नाम को भी पत्थर पर लिख दिया जाए, तो पत्थर पानी में तिरने लगता है, तब स्वयं उस व्यक्ति में तो न जाने कितनी ताकत होगी? स्वयं रावण भी सोच में पड़ गया। रावण को भी लगा कि राम में कुछ तो विशेष तो है ही। सोच को बनाएँ सकारात्मक
७९
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org