SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रावण ने यह घोषणा करवा दी कि वह भी पत्थर को पानी में तैराकर दिखाएगा। समुद्र-तट पर भीड़ इकट्ठी हो गई। रावण ने पत्थर पर लिखा-'रावण'। पत्थर को हाथ में उठाया और प्रणाम करते हुए पानी में छोड़ दिया। आश्चर्य, पत्थर तिरने लगा। रावण की जय-जयकार होने लगी। रात को मंदोदरी ने रावण से पत्थर तिरने का राज़ पूछा। मंदोदरी जानती थी कि रावण कितना भी शक्तिसम्पन्न क्यों न हो, पर उसके नाम से पत्थर पानी में तिरने लगे, यह सम्भव नहीं था। आखिर रावण ने कहा, “प्रिये! तुमसे क्या छुपाना? सच तो यह है कि जब मैंने पत्थर पानी में छोड़ा तो उससे पहले मैंने मन में कहा, पत्थर! तुम्हें राम की सौगन्ध, अगर तुम पानी में डूब गये तो! और सचमुच पत्थर पानी में न डूबा। और फिर पत्थर के ऊपर भले ही रावण का नाम लिखा हो, पर पत्थर के नीचे 'राम' लिखा था। इसे मैं कहता हूँ सकारात्मकता। दुश्मन में भी रहने वाली अच्छी चीज का सम्मान करना सकारात्मकता को जीने का श्रेष्ठ तरीका है। मैंने जब से अपना होश सम्भाला, तब से मुझे अपने जीवन में सबसे ज्यादा प्यारी रही मेरी अपनी माँ। माँ से मुझे जिस कारण से प्रेम रहा उनमें पहली बात, उसने हमारे लिए महान् त्याग किए। जीवन में जब-जब भी विपरीत निमित्त आते, हमेशा माँ का स्वरूप याद आता रहा। जब हम बालक बदमाशियाँ भी कर लेते और पिता हमें डाँटने या पीटने लगते, तो माँ यही कहती, 'बच्चे हैं, अब कर भी दिया तो क्या हो गया?' बालक के द्वारा की गई गलतियों के बावजूद माँ का उसके प्रति सकारात्मक रुख बनाए रखना, यह जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैंने माँ के चेहरे पर कभी भी शिकन, शिकवा या गुस्से की लकीर नहीं देखी। मैं उस माँ को इसलिए प्रणाम नहीं करता कि उसने हमें जन्म दिया है बल्कि मैं माँ को इसलिए प्रणाम करता हूँ कि उसकी शांति, सहिष्णुता, सकारात्मकता विरासत रूप में मुझे भी मिली है। जब माँ के सामने छोटे लोग गलती करते तो वह कहा करती कैसे जिएँ मधुर जीवन ८० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy