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थी, 'बच्चे हैं, बच्चे तो गलतियाँ करते ही हैं'। जब कोई बड़े लोग उनसे कुछ कहा करते तो कहती, 'बड़े लोग कहने के लिए होते हैं । वे नहीं डाँटेंगे तो कौन डाँटेगा?' तो हम जाकर कहते, उन्होंने आपको ऐसा- ऐसा कह दिया, तो कहती, ‘कोई बात नहीं, माइत है'। बड़ों द्वारा दिये गये उलाहना को इतनी सहजता से स्वीकार कर लेना और छोटों की गलती को इतनी सहजता से माफ कर देना इसी का नाम है पॉजिटिवनेस । इसी का नाम है सकारात्मकता। जीवन का संतुलन, स्वयं की सहजता और शांति का संतुलन बनाए रखने के लिए इस नसीहत से आप जो सीखना चाहें, वह सीख लें।
अगर कोई व्यक्ति हर हाल में सकारात्मक बना हुआ रहता है तो आप शांत रहेंगे, क्रोध से बचे हुए रहेंगे। आखिर हम अपने माइतों को तो सुधार नहीं सकते। उनको तो हम कह नहीं सकते कि गुस्सा मत करो, पर हम अपने आपको तो अपने नियन्त्रण में रख सकते हैं। अगर लगा कि अमुक वातावरण ठीक नहीं है, तो अभी वहाँ से हट जाएँ । दूध कोई हमेशा थोड़े ही उफनता रहता है । जब अंगीठी में आग रहती है तब तक उफनने की संभावना रहती है और अंगीठी कोई हर वक्त थोड़े ही जलती रहती है! अगर चौबीस घंटे आदमी के दिमाग में क्रोध चढ़ा हुआ रह जाए तो आदमी को बुखार चढ़ जाएगा । अगर आदमी के दिमाग में चौबीस घंटे विकार का उफान भरा हुआ रह जाए तो आदमी को ब्रेन हेमरेज होना शुरू हो जाएगा । वस्तुतः निमित्त को पाकर ही उफान आया करते हैं और हम वापस शांत भी हो जाया करते हैं ।
तुम तब पुनः उस वातावरण में जाओ जब वहाँ का उफान शांत हो जाए। अगर तुम्हें लगे कि अभी भी उफान बरकरार है, तो तुम अभी तो आए हो दो घंटे से, पर बाद में आना चार घंटे से । चार घंटे के बाद भी तुम्हें लगे कि अभी उफान है, अभी भी वैसी ही प्रतिक्रियाएँ हैं तो तुम आठ घंटे के बाद आना। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम आठ घंटे के बजाय आठ दिन के बाद आए, आठ दिन के बजाय तुम आठ महीने
सोच को बनाएँ सकारात्मक
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