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के बाद आए। मूल्य दिनों का नहीं होता, मूल्य होता है जब तुम जिस वातावरण में पहुँचो, अगर उस वातावरण में तुम्हारे लिए सम्मान बरकरार नहीं रहता तो वह वातावरण तुम्हारे रहने के काबिल नहीं है।
अगर मैं आप लोगों के बीच आऊँ और मुझे लगे कि मेरे प्रति आप लोगों में प्रेम और सम्मान नहीं है तो मुझे आप लोगों के बीच नहीं आना चाहिए। ठीक इसी कदर आप मेरे पास आएँ और मैं आपके प्रति प्रेम और सम्मान से भरा हुआ नहीं होऊँ तो आपका मुझ तक आने का कोई अर्थ नहीं है। जब मैं आपके बीच पहुँचता हूँ, आप सभी मेरे सम्मान में खड़े हो जाते हैं। मैं आप लोगों का शुक्रगुजार हूँ। शुक्रिया अदा करता हूँ कि आप मेरे सम्मान में इस कदर विनम्र हैं। अगर मैं अपनी
ओर से वापस आपका सम्मान न करूँ तो यह मेरी ओर से नकारात्मकता है। सम्मान किसी को तभी मिलता है जब कोई वापस उसके बदले में सम्मान देने के लिए तत्पर रहता है। अपने ही बीच बैठी प्रिय आत्मन् गीता अरोड़ा ने मुझस कहा, 'जब मैं आपके पास आती हूँ, आप कृपा करके हाथ जोड़ कर मेरा सम्मान न किया करें। सम्मान तो मैं आपका करूँगी। सम्मान तो सदा देने की चीज होती है, लेने की चीज नहीं।'
इस सुन्दर बात के लिए उसका अभिनन्दन कि सम्मान सदा औरों को देने के लिए होता है, लेने के लिए नहीं। उसने मुझसे मेरे ही उसूल की बात कही। सम्मान तो औरों को दिया जाए तो सम्मान का सम्मान बढ़ता है। सम्मान अगर औरों से ले लिया जाए तो सम्मान का कद बौना हो जाता है। हाँ, यह औरों को देने की चीज है और यह तभी दी जा सकती है जब हम औरों के प्रति सकारात्मक बनेंगे। तथा औरों को भी उसी रूप में देखेंगे। माना आप मेरे लिए किसी शिष्य के बराबर होंगे, पर आप अपने आप में किसी के माता-पिता, किसी के भाई-बहिन भी तो हैं। आप का सम्मान किया जा सके, वह
चैतन्य-सत्ता भी तो है। और बातों को छोड़ भी दें, तब भी आप इंसान तो हैं, आप में मनुष्यता की पर्याय तो है। आपके भीतर भी वही ८२
कैसे जिएँ मधुर जीवन
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