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आत्मा और चेतना है जो हर शरीर के भीतर रहती है। सबका सम्मान हो, धरती के हर प्राणी का सम्मान हो, मनुष्य तो क्या प्रकृति के हर अंग का सम्मान हो। और तो और, रास्ते में पड़ा हुआ कोई काँटा है तो उस काँटे को भी अपमानित मत कीजिए। उसे भी एक किनारे उठाकर फेंके तो सम्मान के साथ फेंकिए। अगर आपने काँटे का अपमान कर दिया तो वह भी आपके अपमान का कारण बन जाएगा। सकारात्मकता! हर हाल में सकारात्मकता।
व्यवसाय करते हो तो व्यवसाय में भी सकारात्मकता, किसी के साथ व्यवहार हो तो व्यवहार में भी सकारात्मकता। पति-पत्नी हो तो कहा-सुनी भी हो ही जाती है, पर अगर रूठ कर बैठ गए तो वह तुम्हारे लिए आत्मघातक होगा। यह स्थिति तलाक तक की नौबत ला सकती है। आप सकारात्मक बनिए। आज नहीं तो कल, सामने वाले की नकारात्मकताएँ अपने आप खत्म हो जाती हैं।
मैंने कहा ‘सोच सकारात्मक हो'। जब भी सोचो सकारात्मक सोचो। इससे जुड़ी दूसरी बात का भी ध्यान रखें कि जब भी सोचो समग्रता से सोचो। अपनी सोच को हमेशा समग्रता दिए रखें। कभी भी व्यग्रता के क्षणों में अपनी सोच, मन और दिलो-दिमाग का उपयोग मत करो। व्यग्रता के क्षणों में किया गया चिंतन, व्यग्रता के क्षणों में किया गया विचार, व्यग्रता के क्षणों में लिया गया निर्णय उल्टे व्यग्रता को बढ़ाता है। व्यग्रता में व्यक्ति उल्टा-पुल्टा ही सोचता है। ‘अच्छा, उसने मुझे नालायक कहा! ठीक है। अबकी बार मिलने दे। उल्लू के पढे को सीधा न कर दूँ तो मेरा भी नाम नहीं।' यानी व्यग्रता, व्यग्रता को बढ़ाती है। व्यग्रता के क्षणों में व्यक्ति अपने दिमाग के प्रति सावचेती रखे। जैसे ही लगे कि ये व्यग्रता के क्षण हैं, आप तत्काल श्वास को शांत मंद करते हुए स्थितिप्रज्ञ हों। तत्काल सोचें, मैंने अपने जीवन का लक्ष्य बनाया है कि मैं शांत रहूँगा। इस समय व्यग्रता का वातावरण है अतः मुझे अपनी शांति बनाए रखनी चाहिए। यह सोच को बनाएँ सकारात्मक
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