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अन्तर्बोध होते ही वातावरण भले ही वही रहे, किन्तु मन शांत रहेगा।
तुम या तो शांति से जवाब दोगे या फिर लाजवाब हो जाओगे। तुम जवाब नहीं दोगे और विपरीत क्षणों में, व्यग्रता के क्षणों में जवाब न देना इससे बढ़िया लाजवाब क्या होगा? शांत, हर हाल में व्यक्ति इस बात का बोध बनाए रखे कि मैं हर हाल में अपनी शांति को बरकरार रखूगा। आप दिमाग को ठंडा रखिए, जुबान को नरम रखिए और दिल में रहम रखिए। स्वर्ग का सुकून आपके हाथ होगा। कोई व्यक्ति अशांत होता है, यह उसकी कमी या मजबूरी है। मैं उसको अपनी कमी या मजबूरी नहीं होने दूंगा। फिर चाहे इसके लिए मुझे कैसा भी सेक्रीफाइस क्यों न करना पड़े। ____ व्यग्रता हो तो मत सोचो। जब भी किसी बात पर निर्णय लेना हो तो समग्रता से सोचो। इस बिन्दु पर भी ध्यान दो। उस बिन्दु पर भी ध्यान दो, निर्णय पर पहुंचने से पहले हर हानि, हर लाभ पर अपना ध्यान जरूर केन्द्रित करो। अगर बाद में सोचना शुरू किया हानि होने के बाद, तो यह तुम्हारे लिए घाटे का सौदा होगा। आपमें कई वणिक्-पुत्र भी कहलाते होंगे। अतः वणिक् बुद्धि का, व्यवसाय-बुद्धि का उपयोग कीजिए कि लाभ-हानि कहाँ है? और अगर ब्राह्मण हो तो भी वणिक् बन जाओ। तुम और कोई जात या कौम के हो तो भी मैं कहूँगा कि तुम वणिक् बनो। वणिक्-बुद्धि का उपयोग करो। देख लो इस बिन्दु को भी, उस बिन्दु को भी, हानि को भी, लाभ को भी। किस सोच और किस विचार पर चलने से आपको लाभ है और किस पर चलने से हानि है इसका भी सकारात्मक निर्णय लें। क्या अभी व्यग्रता का क्षण है? क्या आशंका, आवेश या दुराग्रहों का क्षण है? नहीं, तुम्हारी सकारात्मक और समग्रता की सोच का आभामंडल अपने आप तुम्हारे वातावरण को निर्मल करेगा, इतना धीरज अवश्य धरो। जीवन में इस तरह के विपरीत वातावरणों में जितना काम धीरज आता है, उतना काम और कोई भी गुण नहीं आता।
कैसे जिएँ मधुर जीवन
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