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प्रसन्नचंद की विचारधारा सकारात्मक हुई, विचारधारा के विधायक बनते ही नरक की ओर होने वाली गति रुक गई। नरक का रूपान्तरण हो गया। नरक की बजाय वह स्वर्ग का साधक बन गया।
मैंने जीवन में जहाँ तक मुझे याद है, कभी कोई पाप नहीं किया है। इस अर्थ में कभी पाप नहीं किया कि मैंने अपने दिल में कभी भी नकारात्मक विचारों को प्रविष्ट नहीं होने दिया। मैंने जीवन में ढेर सारे पुण्य कमाए हैं। इस अर्थ में कि मैं हमेशा सकारात्मकता को बनाए रखने में ही विश्वासी रहा। मैं जितना अधिक ईश्वर में आस्था रखता हूँ, उससे कहीं ज्यादा अपने विचार और वृत्ति को सम्यक्, निर्मल और पवित्र बनाए रखने के प्रति सजग रहता हूँ। मैं उसके प्रति ज्यादा आस्तिक रहता हूँ। मेरा विश्वास किसी धर्म में नहीं है, मेरा विश्वास अपने आपको धारण करने में है। महावीर या बुद्ध ने क्या कहा है, यह बात बहुत मूल्यवान होगी। पर मेरी जिह्वा से क्या बात निकल रही है, मेरे लिए इस बात का बहुत बड़ा मूल्य है। मैं ऐसी कोई बात नहीं कहना चाहता जिसे कहने के बाद मुझे अपनी कही हुई बात के लिए प्रायश्चित करना पड़े, या यह सोचना पड़े कि मैंने यह क्या कह डाला! कहने से पहले सोच पूरी हो, प्रखर हो, प्रज्ञा
और मनीषा से समृद्ध हो। कहने के बाद अगर प्रायश्चित भी करोगे तो उस तीर का क्या मतलब जो किसी कमान से निकल चुका हो।
आप सकारात्मकता को अपनी पूंजी समझें, जीवन-मूल्यों की कुंजी समझें। जैसे ही नकारात्मकता लाएँगे, हमारा उत्साह क्षीण हो जाएगा। जैसे ही हम किसी के प्रति नेगेटिव हुए, हमारे उसके साथ सम्बन्ध शिथिल और क्षीण हो गए। हाल ही कुछ दिनों से देख रहा हूँ मैं एक ऐसे शख्स को जिन दो लोगों के बीच में नकारात्मकता आरूढ हो चुकी है। मैं निरन्तर यह परिणाम देख रहा था कि व्यक्ति के हृदय में अगर नकारात्मकता घुस जाए तो उसके क्या-क्या दुष्परिणाम होते हैं। मैं कई दिनों से उस व्यक्ति के जीवन में आए उस नकारात्मक ७८
__ कैसे जिएँ मधुर जीवन
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