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________________ दलदल में उलझे हुए हो। इससे पहला नुकसान तो हमें यह हो रहा है कि हमारी ऊर्जा तथा मस्तिष्क की सबसे मूल्यवान क्षमता नष्ट हो रही है। सकारात्मकता के अभाव में डॉक्टरों की मार्केटिंग जबरदस्त चल रही है। आम आदमी सोच को, नजरिये को सकारात्मक बनाए, तो अति उत्तम, पर कम-से-कम अपने लोग तो जो धर्म और साधना के मार्ग पर कदम बढ़ा चुके हैं, यह संकल्प लें कि मैं हर हाल में सकारात्मक रहूँगा। खास तौर पर विपरीत वातावरण बन जाने पर, ओछी टिप्पणी सुन लेने पर, दस लोगों के बीच हल्का बताये जाने पर, यानी विपरीतता के बावजूद हम अपने आप को सहज रखेंगे, सौम्य रखेंगे। बात समझ में न आए, तब तक इस बात को जीना कठिन है। बात समझ में आ गई, तो यह फूल की खुशबू की तरह हमारे साथ होगी। जैसे ही लगे कि विपरीत निमित्त आया और तत्काल मंत्र-सुमिरण कर लें कि सकारात्मक सोच। या आप वहाँ से हट जाएँ, इस बात को लेते हुए कि मुझे अपने आप को सकारात्मक रखना है। तब निमित्त आप पर हावी न हो पाएगा और आप अपनी शान्ति और सौम्यता को तब हर हाल में बनाए रखने में सफल हो जाएँगे। याद रखें, सकारात्मक सोच स्वयं का श्रेष्ठ धर्म है। इससे बढ़कर कोई धर्म नहीं होता। नकारात्मक सोच स्वयं ही विधर्म है। इससे बढ़कर कोई विधर्म नहीं होता। सकारात्मक सोच स्वयं ही पुण्य है। इससे बढ़कर कोई पुण्य नहीं होता। नकारात्मक सोच स्वयं ही पाप है। इससे बढ़कर कोई पाप नहीं होता। अगर किसी राजर्षि प्रसन्नचंद के लिए कहा गया कि यह अगर इस क्षण मरता तो नरक में जाता। आखिर क्यों? इस कारण कि उसकी सोच बदल गई, सोच नकारात्मक बन गई। नकारात्मक सोच ही जीवन का पाप बनी। सोच ने ही नरक के द्वार खोले और सोच ने ही स्वर्ग के । संत बनने से भी ज्यादा जरूरी है सोच अच्छी हो, सकारात्मक हो। जिन क्षणों में राजर्षि सोच को बनाएँ सकारात्मक ওও Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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