________________
'हुजूर, इस स्वप्न का अर्थ तो यह है कि आप अपने परिवार में सबसे अधिक जीएँगे । आपकी उम्र बहुत लम्बी है । '
यह सुनकर बादशाह खुश हो गए और बोले, 'बीरबल, तुमने ऐसा स्वप्न-फल बताकर मुझे खुश कर दिया । बोलो, क्या इनाम माँगते हो ?'
बीरबल ने कहा, ' हुजूर इस स्वप्नपाठक को माफ कर दें । वास्तव में यह कहने की कला नहीं जानता। जो कुछ उसने कहा और जो मैंने कहा, उन दोनों का गूढ़ अर्थ तो एक ही है, किंतु कहने - कहने का फर्क है। एक बात से आप नाराज हो गए और दूसरी बात से आप खुश ।
आप समझ गए होंगे कि सारा फर्क जबान का है । जबान मीठी, जगत मीठा । जबान खारी, जगत खारा । जगत तो आपकी वाणी की प्रतिक्रिया मात्र है । यहाँ मिठास के बदले मिठाए मिलेगी, खटास के बदले खटास । भला, जब वाणी में मिठास लाई जा सकती है, तो खटास लाकर सम्बन्ध क्यों बिगाड़े जाएँ ? जीवन के बेहतर प्रबन्धन के लिए समय- प्रबन्धन, भाषा - प्रबन्धन जरूरी है । इसी तरह जरूरी है बेहतर कार्य - शैली, बेहतर कार्य - प्रबन्धन |
आप अपने आप को, अपनी कार्य शैली को व्यवस्थित करने की कोशिश कीजिए। एक नेक सलाह तो यह है कि आप हर कार्य को परमात्मा की पूजा समझ कर करें । काम भी ऐसे करें, जैसे कि कोई प्रार्थना करता है। 'वर्क इज वर्शिप' । जैसे कि कोई प्रार्थना करता है तन्मयता से, आँख बन्द, करबद्ध स्थिति और मात्र अपने प्रभु में ही लीन, ऐसे ही अपने कार्य को तत्परता से करने में तन्मय और लीन हों ।
एक काम, एक मन । जब खाना खाओ तो मात्र खाना ही खाओ, जब पढ़ाई करो तो पढ़ाई में ही मन हो, जब पूजा करो तो मात्र पूजा में ही दत्तचित्त हों। जब झाडू लगाओ तो तबियत से झाडू लगाओ। मन के भटकते रहने पर ही चूक हुआ करती है । आपको तो फुल्के पर
३६
-
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
कैसे जिएँ मधुर जीवन
www.jainelibrary.org