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डांस करना शुरू कर दिया और लगे नौका पर नृत्य करने। अब तो द हो गई। युवकों के साथ जो युवतियाँ थीं वे भी उनमें शामिल हो गईं और जा-जाकर संत को बार-बार छेड़ने लगीं। बताते हैं कि संत की सेवा में एक यक्ष रहता था। उसने प्रकट होकर नौका को डाँवाडोल करना शुरू कर दिया। सारे युवक घबरा गये । देव ने पूछा, 'कहो संत साहब, क्या आदेश है? आपके एक इशारे पर क्या इन सारे उद्दण्ड युवक और युवतियों को उठाकर नदी में फेंक दूँ?' संत ने कहा 'मेरे भक्त, इन युवकों को उठाकर नदी में फेंकने से क्या फायदा? अगर तुम कुछ कर ही सकते हो तो इनके स्वभाव को बदल डालो | जिस स्वभाव से प्रेरित हो कर ये लोग यह उच्छृंखलता कर रहे हैं । इनका स्वभाव बदलो । हे देव, अगर तुम बदल सकते हो तो उद्दंडो का स्वभाव बदलो । न वध से कुछ होने वाला है और न आत्म-हत्या से । अगर कुछ चमत्कार होगा तो वह स्वभाव के सौम्य बनने से ही होगा ।'
एक अच्छा स्वभाव सौ करोड़ की सम्पदा से भी अधिक मूल्यवान होता है। अगर दुनिया में बदलने जैसी कोई चीज है ही तो आदमी स्वभाव को बदल डाले । जहाँ स्वभाव बदला, जीवन अपने आप बदल गया । चर्चित कहावत है, 'दृष्टि बदली कि सृष्टि बदली।' स्वभाव बदला तो स्वभाव बदलने के साथ ही हमारा व्यवहार और हमारा दृष्टिकोण भी बदल गया । स्वभाव बदलना यानी अपने आपको बदलना। जो अपने आपको, अपने नेचर को बेहतर नहीं बना पा रहे हैं, वे न तो अपना कैरियर बना पा रहे हैं और न ही जीवन का कोई मधुर परिणाम उपलब्ध कर पा रहे हैं । वे एक तरह से अपनी आत्म-हत्या कर रहे हैं ।
स्वभाव बदलने के लिए जरूरी है कि हम पहचानें अपने आप को । पहले चरण में हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे स्वभाव में अमुक-अमुक कमियाँ हैं, अमुक-अमुक खराबियाँ हैं, अमुक-अमुक अवगुण हैं। बगैर स्वीकार किए कोई व्यक्ति अपने स्वभाव-परिवर्तन के
स्वभाव सुधारें, सफलता पाएँ
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