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ऊँचा उठता हुआ स्वभाव ही उसकी प्रभुता है । पशु भी हमारा अपना प्रतिबिम्ब है और प्रभु भी हमारा अपना ही आईना है। मनुष्य तो बीच का सेतु है, बीच की कड़ी है। पशु अपने स्वभाव से मुक्त नहीं हो सकता और प्रभु अपने स्वभाव से मुक्त नहीं हों सकता । पशु, पशु से और ज़्यादा नीचे नहीं गिर सकता लेकिन इंसान पशु से भी ज़्यादा नीचे गिर सकता है। प्रभु अपने स्वभाव से और ऊँचा नहीं उठ सकता लेकिन इंसान अगर उठता हुआ स्वभाव वाला हो तो प्रभुता की डगर को भी पार कर जाता है। अगर इंसान अपने-आप पर नियंत्रण न रख पाए तो इंसान केवल भौंकने वाले श्वान की तरह होगा वह डॉग हो जाएगा । लेकिन इंसान अगर सुधर जाए, अपने स्वभाव को उलट डाले तो डॉग उलट कर गॉड हो जाएगा । शब्द बहुत ही सरल है डॉग और गॉड। गॉड गिर कर डॉग बनता है और डॉग ऊपर उठ कर गॉड बनता है । यह आदमी पर निर्भर है कि वह अपने आपको कौन - सा मापदण्ड देना चाहता है? डॉग का या गॉड का । पशुता का या प्रभुता का । मनुष्य पर निर्भर करता है कि आदमी अपने स्वभाव को जीतना चाहता है या जैसा बिगड़ा हुआ स्वभाव है, आदमी तदनुसार जीना चाहता है ।
कोई भी प्राणी अपने साथ अच्छे स्वभाव को लेकर नहीं आता। हर व्यक्ति अपने साथ स्वभाव में कोई-न-कोई बुराई लेकर आता है। स्वभाव को अच्छा बनाना पड़ता है। अगर आपका तीन साल का छोटा बच्चा है और जैसे ही दरवाजे पर वह किसी कुत्ते को आते हुए देखेगा तो बच्चा उसे रोटी देने के लिए नहीं मचलेगा। वह लाठी उठाएगा और मारकर उसे भगाना चाहेगा। आदमी के स्वभाव में जन्म से ही बुराई है। अच्छा तो उसे बनाना पड़ता है। यहाँ सबके पाँव कीचड़ से सने हैं। सबको ही जीवन-शुद्धि के लिए प्रयत्न करना होगा। मुंडे हुए सर वालों को मन के मुंडन का प्रयास करना होगा । शिव-मंदिर जाने वालों को मन को शिव - सुन्दर बनाना होगा ।
कोई अगर मुझसे पूछे कि धर्म का औचित्य क्या है ? पुरुषार्थ
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स्वभाव सुधारें, सफलता पाएँ
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