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सब कुछ सम्भव है, बशर्ते तुम उसे तबीयत से, मन से करने की कोशिश करो। जो करो, उसे पूरा सौ प्रतिशत करो। आधे-अधूरे मन से मत करो। अन्यथा काम भी बिगड़ेगा और तनाव भी बढ़ेगा । काम के समय काम करो और जब काम न कर रहे हों, तो आराम करो । दुकान जाओ तो घर को साथ मत ले जाओ। घर आओ तो घर आओ । घर आओ, तो दुकान को साथ मत लाओ। कर्मयोग ऐसे करो कि शांति बाधित न हो ।
योग का दूसरा स्वरूप है, 'ज्ञानयोग' । अगर आपको ईश्वर और कुदरत ने बुद्धि दी है तो उस बुद्धि का विवेकपूर्वक उपयोग कीजिए । ज्ञान से बढ़कर कोई प्रकाश नहीं है, कोई आँख नहीं है। ज्ञान से बढ़कर कोई सुवास नहीं है और ज्ञान से बढ़कर कोई गुण नहीं है ज्ञान ईश्वर की ओर से मनुष्य को मिला हुआ अतिरिक्त वरदान है अगर आप अपने ज्ञान के साथ विवेक को जोड़कर रखेंगे तो आपका ज्ञान आपके लिए ज्ञानयोग बन जाएगा ।
अगर विवेक है तो सब कुछ है और अगर विवेक नहीं है तो आप कितने ही पढे-लिखे हैं, कितने ही पैसे वाले हैं, कुछ भी हैं पर योग-रहित हैं। जिन्हें न बोलने में विवेक, न खाने में विवेक, न चलने में विवेक तो जिनकी जिंदगी में विवेक ही नहीं है, अगर वे अपने आप को धार्मिक भी कहते हैं तो मैं कहूँगा कि यह महज़ प्रवंचना है | जिस व्यक्ति के पास विवेक है, उसी के पास धर्म की डगर है और जिसके पास विवेक नहीं है, उसका ज्ञान बात-बेबात में औरों को दिया जाने वाला उपदेश मात्र है ।
यदि यों ही ज्ञानी महाराज बनते रहें तो अकड़बाज तो जरूर हो जाओगे और किसी और को कुछ भी न समझोगे । दुनिया में यही होता आया है। जिसके पास पैसा बढ़ गया, वह भी अकड़बाज हो गया और जिसके पास ज्यादा ज्ञान आ गया, वह भी अकड़बाज हो गया ।
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कैसे जिएँ मधुर जीवन
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