________________
में और सहज ही भगवान का नाम-स्मरण भी हो रहा है। आपका झाडू लगाना भी माला के जाप करने जैसा हो जाएगा।
रोटी बनाओ तो उसे बनाते-बनाते भी भगवान का नाम ले लो। भोजन करने बैठो तो भगवान का नाम लो, ‘प्रभु! स्वीकार करो प्रसाद' । यह मत सोचो कि मैं खा रहा हूँ। मैं तो भीतर बैठे भगवान को समर्पित कर रहा हूँ। अगर आप अपने भीतर ही परमात्मा की किरण को स्वीकार कर लें तो हममें कोई भी ‘गधा' ऐसा नहीं होगा जो जर्दा, तम्बाकू खाए, सिगरेट पिए, शराब पिए या और कुछ इस तरह का कचरा खाए। क्या आप किसी मंदिर में जाकर सिगरेट चढ़ाते हैं? अगर वह अच्छी चीज है तो चढ़ाया करो। कोई आदमी गुटखा या पान पराग नहीं चढ़ाता। ऐसा कोई कचरा नहीं चढ़ाते हम भगवान को। हम भगवान को अच्छी-से-अच्छी चीज चढ़ाते हैं, फल चढ़ाते हैं, पुष्प चढ़ाते हैं, मिठाइयाँ चढ़ाते हैं। भई! अपने भीतर भी तो भगवान है, यह मानकर खानपान ग्रहण कीजिए कि मैं अपने प्रभु को अर्घ्य चढ़ा रहा हूँ! भोजन करने के लिए बैठें तो एक पल के लिए पलकों को झुकाइये, ईश्वर को याद कीजिए और भोजन करना शुरू कीजिए। भोजन पूरे मन से कीजिए, तबीयत से कीजिए, धैर्यपूर्वक कीजिए, मौनपूर्वक कीजिए। एक-एक कौर हम उसे चढ़ा रहे हैं। आप ताज्जुब करेंगे कि आपका भोजन करना भी आपके लिए योग का चरण बन रहा है। ___ कबीर जैसे लोग जब बाजार में जाते तो लोग उनसे पूछते, 'कहाँ जा रहे हो?' तो कबीर कहते, ‘मंदिर की परिक्रमा लगाने जा रहा हूँ।' कबीर बाजार जाते तो कहते, मंदिर की परिक्रमा लगाने जा रहा हूँ! खाते-पीते तो कहते, भगवान की सेवा कर रहा हूँ!' खाऊँ-पीऊँ सो सेवा, उठू-बैह् सो परिक्रमा। मैं जो उठता-बैठता हूँ, वह तेरे नाम का। हर कार्य को, हर कर्त्तव्य को आप भी कर्मयोग बना सकते हैं। निठल्लापन कोई काम का नहीं है, चाहे आप गरीब हों, चाहे आप अमीर हों। चाहे
___कैसे जिएँ मधुर जीवन
९८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org