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में तनाव, घुटन, संत्रास, चिंता, गलाघोंट संघर्ष और न जाने ऐसे कितने प्रेत दिखाई देते हैं जो आदमी की आँखों में बसे हुए हैं। क्या धरती का इंसान आने वाले कल के लिए जीवन की व्यवस्था कर रहा है? क्या कोई समाज आने वाले कल के लिए समाज का कोई सही उदाहरण प्रस्तुत कर पा रहा है? क्या कोई बुजुर्ग अपने घर में रहने वाले वृक्ष के केवल पत्ते और फल ही तोड़ रहा है या उन्हें सींचने का भी प्रयास कर रहा है ताकि आने वाली पीढ़ी को भी कोई नए-मधुर फल मिल सकें?
आदमी ने अपने द्वारा जीवन के इंतजाम कम किए हैं। जबकि उसने विनाशक इंतजाम ज्यादा किए हैं। इस धरती के लोगों के द्वारा अगर किसी में बाँटा जा रहा है तो जीवन कम और मृत्यु ज्यादा बाँटी जा रही है। अगर व्यक्ति अनाज भी खा रहा है, जमीन पर भी रह रहा है तो भी अनाज से लेकर जमीन तक मौत का ही आतंक फैला हुआ है। अगर आदमी अफ़ीम खा रहा है तो ऐसा करके आदमी अपनी छाती को गला रहा है। अगर आदमी तम्बाकू का उपयोग करता है तो वह ऐसा करके अपने लिए कैंसर के नये जंतुओं को पैदा कर रहा है। अगर कोई शराब पीता है तो ऐसा करके वह आँतों को ही गलाने का प्रबन्ध कर रहा है। जीवन के प्रबन्ध कहाँ दिखाई देते हैं? लोग मस्ती के नाम पर मृत्यु के ही तो प्रबन्ध कर रहे हैं। ___ आज कहीं शराब की फैक्ट्रियाँ खुल रही हैं, कहीं शस्त्र बन रहे हैं, कहीं ऐसी दवाइयाँ बन रही हैं जिन्हें खाकर आदमी अपनी आत्महत्या कर सके। आप दिन में कितनी दफा नया जीवन पाने के बारे में सोचते होंगे, कितनी दफा अपनी आत्महत्या करने के विचार कर लेते होंगे, कितनी बार आपको ऐसा लगता होगा कि इससे तो अच्छा था कि मैं मर जाता, पर क्या कभी ऐसा लगता है कि कितना अच्छा होता कि मैं अपने जीवन का निर्माण कर लेता। दुनिया में आज इतनी ‘ओवर किलिंग कैपेसिटी' बढ़ चुकी है कि धरती को एक बार नहीं अगर सात-सात बार
- कैसे जिएँ भधुर जीवन
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