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________________ साथ होते जाएँगे, हमारा स्वभाव स्वतः परिवर्तित होने लगेगा। भले ही लगे कि कल ध्यान किया, पर अभी तक स्वभाव नहीं बदला। ध्यान भी आखिर कोई जादू का डंडा नहीं है कि ध्यान लगाने बैठे और हो गया काम ‘फिनिश’। अगर संकल्प सुदृढ़ हो, प्रयास निरन्तर हो, तो सूत की रस्सी से पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं। ध्यान से स्वभाव भी ऐसे ही बदल जाता है । कहते हैं, एक दफा इन्द्र ने घोषणा कर दी थी कि वह बारह वर्ष तक जल नहीं बरसायेगा। लोगों ने घोषणा सुन ली, पर इसके बावजूद इन्द्र ने देखा कि किसान हल चला रहे हैं, जमीन जोत रहे हैं। इन्द्र को आश्चर्य हुआ। उसने ब्राह्मण का रूप बनाया और किसानों के पास आकर पूछा, 'क्या तुमने इन्द्र की घोषणा नहीं सुनी?" किसानों ने कहा कि हमने घोषणा तो सुन ली, पर हम हल चलाना नहीं छोड़ेंगे। पूछा, 'क्यों?' किसानों ने कहा, 'अगर हमने हल छोड़ दिये तो हमारी आने वाली पीढ़ी बेकार हो जाएगी । वह बारह वर्षो में खेती करना ही भूल जाएगी । इन्द्र बरसे या न बरसे, पर हम अपना प्रयत्न नहीं छोडेंगे।' क्या आप समझ गए कि यह कहानी क्या प्रेरणा देती है? तुम अपना प्रयत्न जारी रखो । बारह वर्षों के बाद ही सही खेती तो होगी ही। अपने स्वभाव, अपनी आदतों को सुधारने के लिए सुदृढ़ मन से संकल्प कर लीजिए और निरन्तर प्रयत्न कीजिए। आपकी साधना फलदायिनी होगी। स्वभाव-शुद्धि के लिए हम अपने मन के विकारों और कमजोरियों को समझें । अन्त में, जो बातें निवेदन कर रहा हूँ, उन्हें दिल में गाँठ बाँध लें। इन पाँच बातों को जीवन के तीन संकल्प बना लें । पहली बात : गुस्सा नहीं करूँगा। किसी को तभी डाँहूँगा जब उससे पहले उसकी तीन गलतियाँ मैं माफ कर चुका होऊँ । ६४ Jain Education International For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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