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विचारपोथी
२१
मैं कहां रहना चाहता हूं ? पहला जवाब - 'कहीं भी ' I दूसरा जवाब - 'सत्संग में' । तीसरा जवाब - 'आत्मा में' |
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२२
वेद जंगल है । उपनिषद् गायें हैं। गीता दूध है । सन्त दूध पी रहे है । मैं उच्छिष्टकी श्राशा रखे हूं ।
२३
सुकरातका वचन है कि 'पापमात्र अज्ञान है' । उलटे ऐसा भी कहा जा सकता है कि 'अज्ञान भी पाप ही है'। गीता ज्ञानको आसुरी संपत्ति कहती है, उसका अर्थ यही है । दूसरेके पापकी ओर किस दृष्टि से देखें, यह सुकरातका वचन बतलाता है । खुदके ज्ञानकी ओर किस दृष्टि से देखें, यह गीता बताती है ।
२४
आत्मविषयक ज्ञान प्राथमिक अज्ञान है । मुझमें यह अज्ञान है, इसका भान न होना है 'अज्ञानका अज्ञान' या गणितकी भाषा में 'अज्ञानवर्ग' | मैं इस अज्ञान वर्ग में शामिल हूं, इस बात से इन्कार करना है 'अज्ञान - घन' । इसीको विद्वत्ता कहते हैं ।
२५
प्यार करनेवाली माता होती है इसलिए बालकका तुतलाना शोभा देता है । क्षमाशील भगवान् हैं, इसलिए मनुष्यका अज्ञान शोभा देता है ।
२६
परिग्रहकी चिन्ता करें तो अन्तरात्माका अपमान होता है । परिग्रहकी चिन्ता न करें तो विश्वात्माका अपमान होता है । इसलिए अपरिग्रह सुरक्षित ।
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