Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी आकाशमें जिस प्रकार भौतिक हवाएं चलती रहती हैं, उसी प्रकार आध्यात्मिक हवाएं भी चलती रहती हैं। इन हवाओंका उद्गम मुक्त पुरुषोंसे होता है। इनके अव्यक्त स्पर्शसे बद्धोंके मुमुक्षु बनते हैं। ३६४ __ भक्त प्राणवृत्तिसे रहता है। अर्थात्, मनोवृत्तिसे नहीं रहता। निर्वासन होकर रहता है। ३६५ नृसिंहकी पूजा । प्रह्लादका अनुकरण । जिस त्यागमेंसे अभिमान पैदा होता है, वह त्याग नहीं है। त्यागमेंसे शान्ति मिलनी चाहिए। मैंने विषैली वायुका त्याग किया, इसमें मैंने विशेष क्या किया ! मैंने अपनी शान्ति प्राप्त की। आखिर, अभिमानका त्याग ही वास्तविक त्याग है। मुकामको पहुंचनेकी उत्सुकताके कारण रास्ता विघ्नरूप मालूम होता है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि वह मुकामको पहुंचानेका साधन है। जल्दी पहुंचनेकी धुन हो, तो कदम तेजीसे उठाने चाहिए। ३९८ काम-क्रोधसे भी ज्ञान सिद्ध होता है। यदि हम इस जानकी विनय कर सके, तो काम-क्रोध शान्त हो जायंगे। ३६६ यतत्+विपश्चित्+मत्पर=स्थितप्रज्ञ । ४०० मनुष्य कितना ही विद्वान् क्यों न हो, यदि उसका ज्ञान देहमें समाता हो, तो उस ज्ञानका माप स्पष्ट ही है। For Private and Personal Use Only

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