Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 81
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोपी नवविधा याने नौ प्रकारकी ही होनी चाहिए, ऐसा कायदा नहीं है। नवविधा याने अनेक प्रकारकी, नई-नई उमंगों द्वारा प्रकट होनेवाली, ऐसा भाव मैं ग्रहण करता हूं। ५४७ 'पश्यति'के बिना जिसे विश्वास नहीं होता, वह 'पशु'। 'मनुते से ।जसका काम हो जाता है, वह 'मनुष्य'। ५४८ अनुभवीका अनुभव-यदि वह प्रामाणिक हो-प्रमाण मानना चाहिए। परन्तु इसका यह मतलब नहीं होता कि अनुभवीका निष्कर्ष प्रमाण मानना चाहिए। ५४६ वास्तविक साधन एक ही-छटपटाहट । वास्तविक सिद्धि एक ही-शान्ति । साधक अग्निके समान हो-विवेक जिसका प्रकाश, वैराग्य जिसकी उष्णता। परा-नेति । पश्यन्ती-ॐ। मध्यमा-राम। वैखरी-सत्य। ५५२ मनमें जमा हुमा कूड़ा-करकट साफ कर मन खाली करना अपरिग्रहका काम है। ५५३ ब्रह्म केवल 'नेति' नहीं है । ब्रह्म 'नेति नेति' है। जो सगुण भी नहीं और निर्गुण भी नहीं, वही वास्तविक निर्गुण । For Private and Personal Use Only

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