Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 100
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी (२) समंजस अद्वैत जो एकसाधननिष्ठ होता हुआ अन्य साधनोंको मानता हैं। (३) सारग्राही अद्वैत जो साधनसमुच्चयनिष्ठ होता है। (४) प्रात्यन्तिक अद्वैत जो साधन-मात्रमें अद्वैत अनुभव करता है। ६६५ जीवन विचार, अनुभव और श्रद्धा का घनफल है। ६६६ संत गायके समान वत्सल हैं, इसलिए स्वयं तत्त्वज्ञानकी कड़बी पचाकर संसारको भक्ति-नीतिका दूध पिलाया करते हैं। उत्साह-वृद्धि, विकार-शमन और ज्ञान-परिपोष-स्वच्छ निद्राके ये तीन लक्षण हैं। अंकुर कब निकलना चाहिए, इसका ज्ञान बोनेवालेके हाथकी अपेक्षा गेहूंको अधिक होता है। फलकी चिन्ता कर्ताको नहीं करनी चाहिए । वह करनेके लिए कर्म समर्थ है। ६६६ शिष्टता-अनुकरणीय । विशिष्टता-चिन्तनीय। अशिष्टता-परिहार्य। ७०० वेद स्वभावसे बोलते हैं। गुरु उपदेशार्थ बोलते हैं। मैं जपार्थ बोलता For Private and Personal Use Only

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