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विचारपोथी
(२) समंजस अद्वैत
जो एकसाधननिष्ठ होता हुआ अन्य साधनोंको मानता हैं। (३) सारग्राही अद्वैत
जो साधनसमुच्चयनिष्ठ होता है। (४) प्रात्यन्तिक अद्वैत जो साधन-मात्रमें अद्वैत अनुभव करता है।
६६५ जीवन विचार, अनुभव और श्रद्धा का घनफल है।
६६६ संत गायके समान वत्सल हैं, इसलिए स्वयं तत्त्वज्ञानकी कड़बी पचाकर संसारको भक्ति-नीतिका दूध पिलाया करते हैं।
उत्साह-वृद्धि, विकार-शमन और ज्ञान-परिपोष-स्वच्छ निद्राके ये तीन लक्षण हैं।
अंकुर कब निकलना चाहिए, इसका ज्ञान बोनेवालेके हाथकी अपेक्षा गेहूंको अधिक होता है। फलकी चिन्ता कर्ताको नहीं करनी चाहिए । वह करनेके लिए कर्म समर्थ है।
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शिष्टता-अनुकरणीय । विशिष्टता-चिन्तनीय। अशिष्टता-परिहार्य।
७०० वेद स्वभावसे बोलते हैं। गुरु उपदेशार्थ बोलते हैं। मैं जपार्थ बोलता
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