Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 98
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी ६८३ ईश्वरकी पैतृक सत्ता स्वीकार किये बिना जगत्में भ्रातृभाव स्थापित नहीं होगा। ६८४ सन्त सूर्यके समान खेतोंमें फसल लावेगा। सधारक अग्निके समान भात पकावेगा। ६८५ गोपियोंके लिए प्रेममूर्ति । द्रौपदीके लिए कारुण्यमूर्ति । अर्जुनके लिए ज्ञानमूर्ति । व्याधके लिए क्षमामूर्ति । ६८६ उपासना तीन प्रकारकी : (१) आत्मपरीक्षणपर-गंभीर। (२) हरिदर्शनपर-आनंदमयो । (३) तत्त्वचिन्तनपर-शान्त । ६८७ उन्मनी-आध्यात्मिक नींद । प्रबुद्ध-आध्यात्मिक जागृति । दोनों एक-दूसरीको जांचनेकी अवस्थाएं हैं। ६८८ सामर्थ्य है सत्य-निष्ठाका। होगा जिसके पास उसका। इसीका नाम 'भगवानका। अधिष्ठान'! For Private and Personal Use Only

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