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विचारपोथी
७०१ सदा असफलता होती है, इसमें आश्चर्य नहीं। सफलता याने समाप्ति । वह हमेशा कैसे हो सकती है ! वह एक ही दफा आनेवाली है।
७०२ अहिंसाका अर्थ न तो ढीली-ढाली सहनशीलता है और न असह्य नियमन ।
दान परिग्रहका प्रायश्चित्त है, इसलिए उसमें अभिमानके लिए अवकाश नहीं।
७०४ __ अस्तेय पद्धतिका नियमन करता है, अपरिग्रह प्रमाणका। फलतः दोनों एक ही हैं।
७०५
ईश्वरी योजनामें विद्यमान अपरिग्रहका श्वासोच्छवास उत्कृष्ट उदाहरण है।
ईश्वरार्पण भूतसेवा तप नियतभोग । त्याग
यज्ञ
पुण्यवान् ईश्वरके पास जाता है, क्योंकि वह पुण्यवान् है। पापी ईश्वरके पास जा सकता है, क्योंकि वह पापी है।।
७०८ एक बार स्वप्न में शेरने मेरा पीछा किया। मैं भागने लगा। साधु भी मेरे साथ भागने लगा। थोड़ी देरमें प्रार्थनाकी जगह
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