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विचारपोथी
आई। शेर पीछा कर ही रहा था। साधु प्रार्थनाकी जगह बैठ गया और मुझसे कहने लगा, "अब आगे मैं नहीं भागंगा। तेरी तू सम्हाल ले ।" मैं भी कांपते-कांपते लेकिन निश्चयसे उसके पास बैठा । इतनेमें शेर गायब हो गया और स्वप्न भी गया।
७०६
निर्गुण-सगुण उपास्य-उपासक
मैं-तू
सज्जन-दुर्जन
जड़-चेतन ये पांच भेद लोप होनेपर संपूर्ण अद्वैत सिद्ध होता है।
७१० इच्छा, प्रयत्न, कृपा प्राप्ति ।
७११ कर्म>अकर्म परन्तु, ज्ञान+कर्म=ज्ञान+अकर्म .:. ज्ञान-00 (अनन्त)
७१२ वेदान्तके समान अनुभव नहीं। गणितके समान शास्त्र नहीं। रसोईके समान कला नहीं।
७१३ गुरु अव्यक्त-मूर्ति है। चाहे शब्द-मूर्ति कह लीजिये।
७१४
देहासक्ति, ज्ञानासक्ति, दयासक्ति । चित्तशुद्धिकारकके सिवा और किसी भी रूप में कर्मकी तरक देखना मुझे नहीं सुहाता।
७१५
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