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विचारपोथी
( समर्थ रामदासस्वामी की नीर्चे की उक्तिको लक्ष्य करके यह विचार
लिखा गया है :
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सामर्थ्य आहे चळवळ चें । जो जो करील तयाचें ।
परंतु तेथें भगवंताचें । अधिष्ठान पाहिजे || )
६८६
ऋषियोंका दर्शन तत्त्ववेत्तात्रों का ज्ञान सन्तोंका अनुभव
६६०
" आप रज्जु - सर्प के समान 'विवर्त' मानते हैं या 'सुवर्णकंकरण' के समान 'परिणाम' मानते हैं ?" "मैं 'सुवर्ण-कंकरण' के समान 'विवर्त' मानता हूं ।”
६६१ 'बुद्धि' - प्रामाण्य चाहिए, 'अहं' - प्रामाण्य नहीं । ६६२
स्नान करते समय 'सहस्रशीर्ष' कहने की प्रथा है । उस वक्त यह भावना करनी चाहिए कि हजारों जलबिन्दुनोंके रूपमें सहस्रशीर्ष परमात्मा हजारों हाथोंसे मुझे स्पर्श कर रहा है जिससे जीव-भाव धुल जायगा ।
.६६३ पिपीलिका उत्तम गुरु । विहंगम उत्तम शिष्य ।
.६६४
(१) एका अद्वैत
जो एकसाधननिष्ठ होनेके कारण अन्य साधनकी कल्पना नहीं कर सकता ।
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