Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 95
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ विचारपोथी जाति-धर्म, कुल-धर्म, राष्ट्र-धर्म आदि विहित हैं । जात्यभिमान, कुलाभिमान, राष्ट्राभिमान आदि निषिद्ध । ६५८ आत्म-त्रयी : (१) पापात्मा, (२) पूतात्मा, (३) परमात्मा । ६५६ प्राप्तकर्म छोड़कर रुचिकर कर्म चुननेमें अस्वादव्रत भंग होता है। ६६० जहां शक्ति टूट जाती है, शक्तिके उस अन्तिम बिन्दुको परमार्थ में 'यथाशक्ति' कहते हैं। जड़-सृष्टि माया-नदीका विस्तार है । जीव-सृष्टि माया-नदीकी गहराई है। ६६२ (१) स्वरूप मत छोड़। (२) सिद्धांत मत छोड़। कम-सेकम (३) मर्यादा मत छोड़। प्रत्याहार त्रिविध : (१) इंद्रियोंको चिंतनके लिए समेट लें। (२) भजनके लिए खोल दें। (३) जीवनके लिए संयमसे काममें लावें । भक्ति चार प्रकारकी : (१) परा, (२) एका, (३) प्रिया, (४) पूज्या । For Private and Personal Use Only

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