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विचारपोथी
जाति-धर्म, कुल-धर्म, राष्ट्र-धर्म आदि विहित हैं । जात्यभिमान, कुलाभिमान, राष्ट्राभिमान आदि निषिद्ध ।
६५८ आत्म-त्रयी : (१) पापात्मा, (२) पूतात्मा, (३) परमात्मा ।
६५६ प्राप्तकर्म छोड़कर रुचिकर कर्म चुननेमें अस्वादव्रत भंग होता है।
६६० जहां शक्ति टूट जाती है, शक्तिके उस अन्तिम बिन्दुको परमार्थ में 'यथाशक्ति' कहते हैं।
जड़-सृष्टि माया-नदीका विस्तार है । जीव-सृष्टि माया-नदीकी गहराई है।
६६२ (१) स्वरूप मत छोड़। (२) सिद्धांत मत छोड़। कम-सेकम (३) मर्यादा मत छोड़।
प्रत्याहार त्रिविध :
(१) इंद्रियोंको चिंतनके लिए समेट लें। (२) भजनके लिए खोल दें। (३) जीवनके लिए संयमसे काममें लावें ।
भक्ति चार प्रकारकी :
(१) परा, (२) एका, (३) प्रिया, (४) पूज्या ।
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