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विचारपोषी
६४८ तू कहता है-प्रयोगसे निश्चित हुआ, इसलिए पक्का है। मैं कहता हूं-प्रयोगसे निश्चत हुआ, इसलिए कच्चा है।
६४६ 'मुझे क्या उपयोग ?' न कहकर 'मेरा क्या उपयोग ?' कहना चाहिए, तभी उपयुक्ततावाद सार्थक होगा।
मेरी वृत्ति कभी संन्यासकी ओर दौड़ती है और कभी भक्तिकी ओर । वस्तुतः दोनोंका अर्थ एक ही है।
६५१ जगत्का कर्ता कौन ?
"मेरे जगत्का मैं ही कर्ता हूं। दूसरे जगत्का मुझे परिचय ही नहीं।"
. प्रत्यक्षसे अंध बनी हुई बुद्धिको सनातन तत्त्व कैसे दिखाई दें!
विश्वमें आत्मा देखें और आत्मामें विश्व देखें इसका नाम है स्व-परावलंबन ।
६५४ (१) प्रात्मपरीक्षण (२) मौन (३) कर्मयोग (४) प्रार्थना
सद्गुण स्वभावतः ही प्रवाही होते हैं। जमे हुए सद्गुण दुर्गुणकी योग्यता पाते हैं।
हिंसासे राज्य मिलेगा, लेकिन स्वराज्य नहीं मिलेगा। स्वराज्यके माने ही अहिंसा है।
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