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विचारपोथी
६२५
आत्मशुद्धिसे विजातीय द्रव्य या तो बाहर फेंका जाता है, अथवा सजातीय बनकर आत्मसात् होता है।
६२६ अहम्-निश्चित इदम्-अनिश्चित तत्-अनन्त
६२७ कायर और क्रूर एक ही।।
६२८ उपयुक्ततावाद स्वयं अपनी उपयुक्तता मान ही लेता है !
६२६
नदीमें मैं भगवान्की बहती करुणा देखता हूं।
६३० तात्त्विक-निर्गुण,
आकाशमें सिर । सात्त्विक-सगुण,
ज़मीनपर पैर।
पारमार्थिक साधनाका प्रारंभ आत्म-विषादसे । 'विषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः ।'
चित्त धोनेके लिए उपयोगी :
मृत्तिका-तपस्या जलहरिप्रेम
'तत्' और 'त्वम्' की संधि 'असि' ही उपासना है ; वही ज्ञान है।
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