Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 91
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी ६२५ आत्मशुद्धिसे विजातीय द्रव्य या तो बाहर फेंका जाता है, अथवा सजातीय बनकर आत्मसात् होता है। ६२६ अहम्-निश्चित इदम्-अनिश्चित तत्-अनन्त ६२७ कायर और क्रूर एक ही।। ६२८ उपयुक्ततावाद स्वयं अपनी उपयुक्तता मान ही लेता है ! ६२६ नदीमें मैं भगवान्की बहती करुणा देखता हूं। ६३० तात्त्विक-निर्गुण, आकाशमें सिर । सात्त्विक-सगुण, ज़मीनपर पैर। पारमार्थिक साधनाका प्रारंभ आत्म-विषादसे । 'विषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः ।' चित्त धोनेके लिए उपयोगी : मृत्तिका-तपस्या जलहरिप्रेम 'तत्' और 'त्वम्' की संधि 'असि' ही उपासना है ; वही ज्ञान है। For Private and Personal Use Only

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