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विचारपोथी
यदि कोई, दरवाजा बन्द करके सोवे, तो सूर्य उसकी सेवा करनेके लिए उसके दरवाजेपर आकर खड़ा रहता है। दरवाजेको धक्का देकर भीतर नहीं घुसता । लेकिन ज़रा दरवाज़ा ढीला होते ही भीतर घुस जाता है। यह सेवक की मर्यादा और तत्परता है।
६१८ भिक्षा याने ईश्वरावलम्बन, अर्थात् समाजकी सद्भावनामें श्रद्धा, याने यदृच्छा-लाभ-संतोष, याने कर्तव्य-परायणता और फल-निरपेक्ष वृत्ति।
६१६ आंख सीधी ही देख सकती है। मनको अांखसे सीखना चाहिए ।
यूक्लिड कहता है, दो बिन्दुओंके बीचका कम-से-कम अन्तर, याने उन्हें जोड़नेवाली सुरेखा। इसी अनुभवपर सत्य स्थित है।
६२१
मनोनिग्रह याने मानसिक शक्तियोंका संग्रह ।
पिघलनेवाले भी थोड़े । लेकिन सुलगनेवाले उनसे भी
थोड़े।
६२३ 'नातिमानिता' दैवी संपत्तिका आखिरी गुण बतलाया गया है। इसके पहलेके सारे गुण प्राप्त हों तो भी अभिमान न होना, उसका अर्थ है।
- कोई कहते हैं, जो कुएंमें नहीं है वह डोलमें कहांसे आवे ? मैं कहता हूं, जो रस्सीमें नहीं है वह डोलमें आता ही है कि नहीं ?
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