Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 90
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी यदि कोई, दरवाजा बन्द करके सोवे, तो सूर्य उसकी सेवा करनेके लिए उसके दरवाजेपर आकर खड़ा रहता है। दरवाजेको धक्का देकर भीतर नहीं घुसता । लेकिन ज़रा दरवाज़ा ढीला होते ही भीतर घुस जाता है। यह सेवक की मर्यादा और तत्परता है। ६१८ भिक्षा याने ईश्वरावलम्बन, अर्थात् समाजकी सद्भावनामें श्रद्धा, याने यदृच्छा-लाभ-संतोष, याने कर्तव्य-परायणता और फल-निरपेक्ष वृत्ति। ६१६ आंख सीधी ही देख सकती है। मनको अांखसे सीखना चाहिए । यूक्लिड कहता है, दो बिन्दुओंके बीचका कम-से-कम अन्तर, याने उन्हें जोड़नेवाली सुरेखा। इसी अनुभवपर सत्य स्थित है। ६२१ मनोनिग्रह याने मानसिक शक्तियोंका संग्रह । पिघलनेवाले भी थोड़े । लेकिन सुलगनेवाले उनसे भी थोड़े। ६२३ 'नातिमानिता' दैवी संपत्तिका आखिरी गुण बतलाया गया है। इसके पहलेके सारे गुण प्राप्त हों तो भी अभिमान न होना, उसका अर्थ है। - कोई कहते हैं, जो कुएंमें नहीं है वह डोलमें कहांसे आवे ? मैं कहता हूं, जो रस्सीमें नहीं है वह डोलमें आता ही है कि नहीं ? For Private and Personal Use Only

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