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विचारपोथी
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६०० जब तपकी अनी लगाते रहेंगे और जपके नक्कारे बजाते रहेंगे, तभी सुप्तात्मा जागेगा।
ईश्वरकी कला कितनी समझ पाया हूं! और जो 'मैं' जितनी कुछ समझा हूं, वह 'मैं' भी क्या ईश्वरकी कला ही नहीं हूं?
६०२ बंध-त्रय : (१) आधारस्थानमें,
विषयका नियमन । (२) नाभिस्थानमें,
आहारका नियमन । (३) कंठस्थानमें,
वाणीका नियमन ।
श्रीगणेशाय नमः माने श्रीगुणेशाय नमः ।
मूर्तिपूजाका अवश्य विधान नहीं है, परन्तु मूर्ति-भंगका अवश्य निषेध है।
संन्यास और योग एक ही ज्ञानाग्निकी ज्वालाएं हैं ।
सूर्य जहां जाता है, वहां प्रकाश ले जाता है-यही बात सेवककी होनी चाहिए। सेवक जिस क्षरण जहां जो करता हो, उस क्षरण वहां उस कार्यमें उसका सेवकत्व उसके साथ होना चाहिए।
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