________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विचारपोथी
५८६ चित्तकी छटपटाहट शान्त होनेके लिए भगवान्का प्रत्यक्ष स्पर्श चाहिए। जरा-सा भी अन्तर सहा नहीं जावेगा । होंठके बिल्कुल निकट लाये हुए पानीके प्यालेसे भी क्या तृषा शान्त होगी?
५८७ प्रार्थनासे भी प्रार्थनामेंसे उत्पन्न होनेवाले वेगका महत्त्व अधिक है । इस वेगपरसे प्रार्थनाकी गहराई नापनी होती है।
५८८ वैराग्यमें भी, साभिलाष वैराग्य और निरभिलाष वैराग्य, ये दो भेद हैं। पहलेका प्राधार 'अनित्य'-भावना है और दूसरेका 'असुख'-भावना।
५८६ तपके भेद : (१) अज्ञानमूलक, (५) वैराग्यमूलक, (२) विषयमूलक, (६) प्रेममूलक और (३) दंभमूलक, (७) ज्ञानमूलक । (४) दुराग्रहमूलक,
५६० प्रतीक्षा और उपेक्षा पूरक भावनाएं हैं । साधकको यथासमय दोनों चाहिए।
व्यक्तिगत प्रार्थनासे मैं ईश्वरकी मदद प्राप्त करता हूं, सामुदायिक प्रार्थनासे सन्तोंकी।
अन्ध श्रद्धाके माने ?–'तर्कको ही भगवान् जानो' ('तर्क तो देव जाणावा'), इस श्रद्धाका नाम है अंध-श्रद्धा।
For Private and Personal Use Only