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देहधारी पुरुषके द्वारा सारी प्रेमशक्ति इकट्ठी करके की गई सम्पूर्ण सेवाका अन्तिम फलित, 'अहिंसा', इस निषेधक शब्द से व्यक्त होता है ।
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यदि ईश्वरकी दूसरी किसी वस्तुसे उपमा दी जा सके, तो वह वस्तु ही ईश्वर क्यों न होगी ? कारीगरकी उपमा चित्रसे कैसे दी जा सकेगी !
५७२
मुर्गे की आवाज़ (१) तीव्र, (२) मृदु, (३) क्रमिक और (४) अनुकंपित होती है । जगानेवालेकी वृत्ति ऐसी ही होनी चाहिए।
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स्वप्न में विचार सूझा - मनुष्यको हमेशा दुग्धाहार करना चाहिए, याने 'सब श्राहारोंका दोहन लेना चाहिए।' अभी अर्थ पूरी तरह खुला नहीं है, लेकिन विचार टांक लेता हूं।
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खुद 'बिगड़' कर दूसरोंको ' बिगाड़ना' सन्तोंका स्वभाव ही श्री तरुरणों को बिगाड़ना तो उनका अवतार कार्य है ।
५७५ भुक्ति और मुक्ति एक ही छड़ीके दो छोर हैं ।
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सभी प्रश्न हल करनेसे हल होनेवाले नहीं होते । कुछ प्रश्न छोड़ दिये कि हल हो जाते हैं ।
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जबतक आंखों में अद्वैत भिद नहीं जाता, तबतक सौंदयको कसौटीका भरोसा करनेसे काम नहीं चलेगा ।
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