Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 84
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org frerrarat Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७० देहधारी पुरुषके द्वारा सारी प्रेमशक्ति इकट्ठी करके की गई सम्पूर्ण सेवाका अन्तिम फलित, 'अहिंसा', इस निषेधक शब्द से व्यक्त होता है । ८३ ५७१ यदि ईश्वरकी दूसरी किसी वस्तुसे उपमा दी जा सके, तो वह वस्तु ही ईश्वर क्यों न होगी ? कारीगरकी उपमा चित्रसे कैसे दी जा सकेगी ! ५७२ मुर्गे की आवाज़ (१) तीव्र, (२) मृदु, (३) क्रमिक और (४) अनुकंपित होती है । जगानेवालेकी वृत्ति ऐसी ही होनी चाहिए। ५७३ स्वप्न में विचार सूझा - मनुष्यको हमेशा दुग्धाहार करना चाहिए, याने 'सब श्राहारोंका दोहन लेना चाहिए।' अभी अर्थ पूरी तरह खुला नहीं है, लेकिन विचार टांक लेता हूं। ५७४ खुद 'बिगड़' कर दूसरोंको ' बिगाड़ना' सन्तोंका स्वभाव ही श्री तरुरणों को बिगाड़ना तो उनका अवतार कार्य है । ५७५ भुक्ति और मुक्ति एक ही छड़ीके दो छोर हैं । ५७६ सभी प्रश्न हल करनेसे हल होनेवाले नहीं होते । कुछ प्रश्न छोड़ दिये कि हल हो जाते हैं । ५७७ जबतक आंखों में अद्वैत भिद नहीं जाता, तबतक सौंदयको कसौटीका भरोसा करनेसे काम नहीं चलेगा । For Private and Personal Use Only

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