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विचारपोथी
अर्थसे शब्द गहरा है। शब्दसे भाव गहरा हैं। भावसे अभाव।
मेरी सूत्रोपासनाकी चतु:सूत्री :
(१) सूत्र याने सूत, (२) सूत्र याने नियम, (३) सूत्र याने प्रेम, (४) सूत्र याने आत्मा।
५६५ अपरिग्रहकी सिद्धिके लिए हिन्दू धर्मने होली-पूर्णिमाकी योजना की है।
कृति कायम रहे, लेकिन कर्ता कायम न रहे, यह भाग्य उपनिषद्के ऋषियोंका है। अहंकारका संपूर्ण नाश हुए बिना यह नहीं होगा।
५९७ दो बिन्दुओंके निश्चित होते ही सुरेखा निशचित हो जाती है। जहां जीव और शिव, ये दो बिन्दु निर्धारित किये, परमार्थमार्ग तैयार हुआ।
५९८ दैववादमें पुरुषार्थके लिए अवकाश नहीं, इसलिए वह नहीं चाहिए । प्रयत्नवादमें निरहंकार-वृत्ति नहीं, इसलिए वह नहीं चाहिए। देववाद में नम्रता है, इसलिए वह चाहिए। प्रयत्नवादमें पराक्रम है, इसलिए वह चाहिए।
५६६ ज्ञान मंत्र है। कर्म तंत्र है। उपासना दोनोंको जोड़ देती है।
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