Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 64
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विचारपोथी भौतिक विज्ञान | आध्यात्मिक विज्ञान | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२५ पाणिनिका जो उत्तम पुरुष, वही भगवान्‌का पुरुषोत्तम । ४२६ सूर्यकी नहीं, अपितु जलसूर्यको भी प्रभा फैलती है। ज्ञानकी ही नहीं, अपितु ज्ञानके प्रभासकी भी कद्र होती है । ४२७ हिमालय सुन्दर है, लेकिन उसकी सुन्दरता-संबंधी मेरी कल्पना उससे भी सुन्दर है । इसका क्या कारण है ? आत्माकी सुन्दरताकी बराबरी जड़-वस्तुकी सुन्दरता कैसे करे ? ४२८ परोपकारके काम चित्तशुद्धि करेंगे, परन्तु यदि निरहंकारवृत्तिसे किये गए हों तो । ४२६ 'श्रुतिaarat का बोझ नहीं होता', आचार्य कहते हैं । इसका अर्थ यह है कि श्रुतिवचन चाहे जितना बोझ सह सकते हैं, यह नहीं कि चाहे जैसा बोझ सह सकते हैं । ४३० ज्ञानकी ज्ञानगम्यता याने पूर्वजन्मकी सिद्धि - अर्थात् ग्रात्माकी अमरता । ४३१ श्रासक्तोंकी श्रासक्तिसे ग्रात्मा के अमरत्वकी सिद्धि नहीं होगी ; क्योंकि प्रासक्ति भ्रमजनित है । विरक्तों की अनासक्ति मात्मा के अमरत्वका वास्तविक प्रमाण है । ४३२ आजका लोकमत - दीनोंका मत, जिसे कोई नहीं पूछता । For Private and Personal Use Only

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