Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 78
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विचार पोथी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२३ ज्ञान बिल्कुल पुराना उत्तम उपासना बिल्कुल अन्तिम उत्तम । ५२४ हार्य अन्नकी वृत्ति-भेदके अनुसार त्रिविध परिणति होती है : लैंगिक, प्राणिक और श्रात्मिक । ५२५ ७७ अर्थ, समाज आदि सामाजिक ज्ञास्त्र नियामक नहीं, नियमित हैं। मैं उन्हें जो नियम लगाऊंगा, उसे स्वीकार करनेको वे बाध्य हैं । ५२६ पानी अपने श्राप मुझे डुबा नहीं सकता । मैं पानी में गिरूं, तभी डुबा सकता है । सो भी जबतक मैं तैरता रहूं, तबतक नहीं डुबा सकता, हैरे थकनेपर डुबा सकता है । सो भी मेरी 'देहबुद्धि' हो, तभी डुबा सकता है, अन्यथा नहीं डुबा सकता। इसका नाम है 'आत्म-स्वातंत्र्य' । ५२८ ५२७ सन्त कौन है ? मुझमें विद्यमान विशिष्ट दोष मुझे जिसमें दिखाई नहीं देता, या अल्पमात्र में दिखाई देता है, वह मेरे लिए सन्त है। इससे अधिक विचार करनेका मुझे कारण नहीं है । 'सत् ब्रह्म' सिद्ध होता है। 'चित् ब्रह्म' ध्यान में श्राता है । 'आनंद ब्रह्म' प्रांखों में भरता है । (१) विश्व (२) जीव, और (३) सन्त । ५२६ पूर्वाचारोंका अनुकरण अपेक्षित नहीं है। अनुमनन पेक्षित है। For Private and Personal Use Only

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