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विचार पोथी
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ज्ञान बिल्कुल पुराना उत्तम उपासना बिल्कुल अन्तिम
उत्तम ।
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हार्य अन्नकी वृत्ति-भेदके अनुसार त्रिविध परिणति होती है : लैंगिक, प्राणिक और श्रात्मिक ।
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अर्थ, समाज आदि सामाजिक ज्ञास्त्र नियामक नहीं, नियमित हैं। मैं उन्हें जो नियम लगाऊंगा, उसे स्वीकार करनेको वे बाध्य हैं ।
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पानी अपने श्राप मुझे डुबा नहीं सकता । मैं पानी में गिरूं, तभी डुबा सकता है । सो भी जबतक मैं तैरता रहूं, तबतक नहीं डुबा सकता, हैरे थकनेपर डुबा सकता है । सो भी मेरी 'देहबुद्धि' हो, तभी डुबा सकता है, अन्यथा नहीं डुबा सकता। इसका नाम है 'आत्म-स्वातंत्र्य' ।
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सन्त कौन है ? मुझमें विद्यमान विशिष्ट दोष मुझे जिसमें दिखाई नहीं देता, या अल्पमात्र में दिखाई देता है, वह मेरे लिए सन्त है। इससे अधिक विचार करनेका मुझे कारण नहीं है ।
'सत् ब्रह्म' सिद्ध होता है।
'चित् ब्रह्म' ध्यान में श्राता है । 'आनंद ब्रह्म' प्रांखों में भरता है । (१) विश्व (२) जीव, और (३) सन्त ।
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पूर्वाचारोंका अनुकरण अपेक्षित नहीं है। अनुमनन पेक्षित है।
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