Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 76
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी युक्ति है । ज्ञानसे हम विश्वपर वारकर उसे सदाके लिए घायल करते हैं । विश्व नष्ट करना ध्यानका रूप है । 'विश्व ही ब्रह्मरूप देखना ज्ञानका रूप है। ५११ कर्तव्यत्रयी : (१) सत्यनिष्ठा, (२) धर्माचरणका प्रयत्न, (३) हरिस्मरण-रूप स्वाध्याय । __५१२ सन्तोंसे भी सत्य श्रेष्ठ है । सत्यके अंश-मात्रसे सन्त उत्पन्न हुए हैं। सांस बाहर निकालते समय एंजिनसे बाहर निकलने वाली भापकी आवाज़की तरह 'सो'की आवाज़ होती है, और सांस भीतर लेते समय गुम्बदमें होनेवाली आवाज़ की तरह 'हम्' की आवाज़ होती है। इतने ध्वनि-साम्यपर ही 'सोऽहम्'की रचना श्वसन-क्रियापर नहीं हुई है। यह बाहरी चिह्न है। श्वसन-क्रियामें निहित आध्यात्मिक उद्देश्य ब्रह्माण्डमेंकी व्यापक भावनासे पिंडमेंकी संकुचित भावना धो डालना है। यह उद्देश्य 'सोऽहम् से सूचित होता है, इसलिए श्वसन-क्रियापर 'सोऽहम्' की रचना है। क्रोधी पुरुषके मौनसे उसका मौन सिद्ध नहीं होता, क्रोध सिद्ध होता है। क्रोधी पुरुषके वक्तृत्वसे उसका वक्तृत्व सिद्ध नहीं होता, क्रोध सिद्ध होता है । ज्ञानी पुरुषके कर्मसे उसका कर्म सिद्ध नहीं होता, ज्ञान सिद्ध होता है। ज्ञानी पुरुषके अकर्मसे उसका अकर्म सिद्ध नहीं होता, ज्ञान सिद्ध होता है। For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107