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विचारपोषी
४६७ लड़का मरनेपर बाप बिना मरे ही मरता है। रजस् तमस् निःशेष होनेपर सत्त्वगुण बिना मरे ही मरता है।
४६८ - कताई अच्छी तरह चलती होती है, तब चरखेमेंसे 'ॐ' 'ॐ' की ध्वनि अनाहत रूपसे निकलती रहती है। जब कुछ बिगड़ जाता है तो 'नेति-नेति' की पुकार होती रहती है।
४६६ गायत्रो आदि मंत्रोंका 'उपांशु'-जप विहित है। अर्थात् ये मंत्र धीमी आवाजमें मन-ही-मन, मानो अपने आपसे कहे जा रहे हों इस प्रकार, जपने होते हैं । अर्धोन्मीलित दृष्टिका जो उद्देश्य है वही इस उपांशु-जपका उद्देश्य है।
सर्वोच्च तत्त्व सर्वव्यापक और सर्वोपयुक्त होनेके कारण सर्वसुलभ होते हैं।
५०१ कृष्णको व्यभिचारी समझकर तू उसकी निन्दा करता है। कृष्ण प्रेममूर्ति है, इसलिए मैं उसकी पूजा करता हूं। व्यभिचारकी निन्दा और प्रेमकी पूजामें विरोध नहीं है। व्यक्तिशः कृष्ण वैसा था, यह प्रश्न केवल ऐतिहासिक है। एकवाक्यताकी यह युक्ति सर्वत्र अविरोध-साधक होनी चाहिए।
अहंकारके पर्वतमेंसे न निकलते हुए और फलके समुद्र में प्रवेश न करते हुए अनासक्तके कर्म मृगजलकी लहरोंको तरह अत्यन्त उत्साहसे होते रहते हैं।
भगवान्की इच्छासे ही कार्य होते हैं ; लेकिन हमारी कृति भगवान्की इच्छाके लिए वाहनके समान है।
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