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विचारपोथी दिखाई देता है। आचरणकी उच्चतापर विचारोंकी भव्यता निर्भर होती है।
४८६ शाश्वत प्रकारकी सेवा कभी उंगलीसे दिखाने-जैसी नहीं होती।
'अक्षरं अनिर्देश्यम् ।'
४६० निर्गुणके कारण सगुणकी उचित मर्यादा रहती है। यदि वह न रही तो सगुण सदोष बनेगा।
४६१ विश्व सोया हुअा विष्णु ही है। उसे प्रेमादरपूर्वक विनय करके ही जगाना चाहिए।
४६२ जो अर्थ शब्द और तत्त्वके अनुसार हो, वह वास्तविक है। ऐसा अर्थ 'शाब्दे परे च निष्णात' ही जान सकता है।
४६३ योद्धा और राजनीतिज्ञके मिलापसे युद्ध में सफलता होती है। सत्याग्रहके युद्ध में अहिंसा योद्धा है और सत्य राजनीतिज्ञ ।
४६४ पृथ्वीको शेषका आधार याने पृथ्वीको पृथ्वीतरका आधार। सांपके समान मालूम होनेवाले परार्थका मेरे स्वार्थको आधार है, यह मुझे जानना चाहिए।
राजस चंचल होता है, यहाराजसका बड़ा उपकार है । यदि वह स्थिर होता तो अनर्थका पार न रहता।
सत्त्वगुणके बिना एकाग्रता नहीं। तमस् शून्यान और रजस अनेकान है
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