Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी ५०४ आकाश रुकावट नहीं करता, इसलिए कोई आकाशका अभाव-रूप मानते हैं । परन्तु आकाश यद्यपि रुकावट नहीं करता हैं, वह अवकाश देता है। इसलिए उसे भाव-रूप ही मानना चाहिए । वह रुकावट नहीं करता, इसका कारण उसका अभावरूपत्व नहीं, बल्कि अपरिच्छिन्नत्व है। ५०५ . ईश्वर दोहरा अवतार धारणकर धर्मकी, तत्त्वकी, स्थापना करता है । (१) कालावतार और (२) पुरुषावतार। कालावतार अधर्मकी असंभावना बतलाता है, पुरुषावतार अधर्मकी अनिष्टता । ५०६ वस्तुमें आकार होता है, प्राकारमें वस्तु नहीं होती और वस्तुमें भी प्राकार (वस्तुसे अलग) नहीं होता, यही वास्तविक चमत्कार है। ५०७ बुद्धि और भावनाका समन्वय ही विवेक है। ५०८ क्षेत्रमें विद्यमान क्षेत्रज्ञको जो नहीं देख सकता, वह क्षेत्रको भी क्या देखता है ? चिरागकी ज्योति जिसने नहीं देखी, उसने चिराग क्या देखा . 'सतत श्वासोच्छ्वास कर' यह विधि और 'सिरके बल मत चल' यह निषेध जिस कारण मेरे लिए लागू नहीं हैं, उसी कारण ज्ञामी पुरुषके लिए नैतिक विधि-निषेध लागू नहीं हैं। नैतिक विधेय ज्ञानी पुरुषके पास सहज ही होते हैं, नैतिक निषेध्य सहज ही नहीं होते। ५१० ध्यान, विश्वके अपनेंपर होनेवाले वारसे बचनेकी तात्कालिक For Private and Personal Use Only

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