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विचारपोथी
+दुर्जनोंका मत, जो किसीको नहीं पूछता । +विद्वानोंका मत, जिसमें मेल नहीं।
४३३ कभी सत्यके लिए हिंसा और कभी अहिंसाके लिए असत्य ; इस तरह दोनोंको उड़ा देना तार्किकोंका व्यवसाय है।
४३४ .. अहिंसादि होते हुए भी आत्म-ज्ञानका उदय नहीं हुआ, यह मैं मान सकता हूं; परन्तु आत्मज्ञानोदय हो जानेपर भी अहिंसादि नहीं हैं, यह माननेमें मुझे कठिनाई होती है। .
.. गृहाभिमानके जाते रहनेपर गृहबंधन छूट जाता है। उसके लिए घर छोड़ना या गिरना नहीं पड़ता। उसी तरह देहाभिमानके जाते रहनेपर देहबंधन छूट जाना चाहिए। उसके लिए देह छोड़नेकी या गिरनेकी आवश्यकता नहीं।
_मांपरसे सन्तोंपर, सन्तोंपरसे ईश्वरपर, यह प्रेमकी ऊर्ध्वगति है।
४३७ 'अाम्नायस्य क्रियार्थत्वात् आनर्थक्यं अतदर्थानाम्' जैमिनिका यह सूत्र 'क्रियार्थत्वात्' की जगह 'दर्शनार्थत्वात्' इतना फर्क कर मैं पढ़ता हूं।
४३८ ईश्वरसे साधर्म्य पाये हुए पुरुषपर विश्वके किसी भी आन्दोलनके सर्ग-प्रलयका परिणाम होना संभव नहीं है।
४३६ भिन्न देवता एक ही देवताकी गुण-मूर्तियां हैं।
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