Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 63
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६२ www.kobatirth.org विचारपोथी ४१७ आलस, अज्ञान और अश्रद्धा ये तीन 'महारिपु' हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ संसारकी गहराई से मत डर ! तुझे पृष्ठभागपरसे ही तेरकर जाना है न ? या भीतर डूबना है ? ४१६ 'सर्व भूत- हित' निर्गुरण उपासना है । उसे नीतिकी बाहरी कसौटी समझकर उसकी 'जन-हित-वाद' से तुलना करना उचित नहीं । ४२० लोकसेवा नम्र कर्तव्य है । लोकसंग्रह श्रेष्ठ अधिकार है। ४२१ 'द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः' - यह श्रुति है । इनमेंसे श्रोतव्यादि तीन द्रष्टव्यके साधन माने जाते हैं । लेकिन द्रष्टव्यादि तीनोंको निदिध्यासितव्य के साधन भी माना जा सकता है । ४२२ देहसंबद्धता -- बुद्ध | देहव्यतिरिक्ता – बुद्ध । देहातीतता - शुद्ध । देहरहितता-मुक्त । ४२३ व्यापक विश्वसंस्था, मर्यादित मानव्य-संस्था तथा विशिष्ट शरीर-संस्था - मनुष्यकी तीन सहज संस्थाएं हैं । इन्हींसे बंधन है, इन्हीं में से मोक्षका रास्ता है । ४२४ सांकेतिक विज्ञान | नैतिक विज्ञान | For Private and Personal Use Only

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