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विचारपोथी
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४०१
उपयोगिता धर्म का शरीर है, चित्तशुद्धि आत्मा ।
४०२
ज्ञानदेवके शब्दों में गीता-तत्त्व 'नित्य नूतन' है । जो नित्यनूतन, वही सनातन ।
४०३
साधक संसारकी स्मारक शक्ति बढ़ानेके उपाय खोजे ।
४०४
अर्जुन पूछता है : 'इच्छा न होने पर भी मनुष्य पाप किस कारण करता है ?" भगवान् उत्तर देते हैं : 'इच्छा रहती है इसलिए करता है ।'
४०५
वेद 'एकं सत्' कहता है, लेकिन साथ-साथ 'विप्रा बहुधा वदन्ति' भी कहता है । 'मूढा बहुधा वदन्ति', कहने को वह तैयार नहीं है। इसमें वेदी अविरोध-वृत्ति दिखाई देती है ।
४०६
(१) चित्तशुद्धि, (२) देशसेवा, (३) विश्व - प्रेम, (४) देवपूजा ।
४०७
'तव्य' - भावना सात्विक मनका एक रोग है ।
४०८
" तुमसे भोग नहीं छोड़े जाते, तो कम से कम भगवान् के नामपर भोगो !" "तुमसे भोग नहीं छोड़े जाते, तो कम-से-कम भगवान् के नामपर मत भोगो !”
४०६
देह —- तमस्, इन्द्रियां - रजस्, बुद्धि - सत्त्व; आत्मागुणातीत ।
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