Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 70
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी ६६ पहुंचाना संभव हुआ, तो वह अपने-आप मंगलपर जावेगा, ऐसो एक वैज्ञानिक अपेक्षा है। किसी भी उपायसे अगर वासनाके आकर्षणके बाहर जाया जा सके तो अपने-आप परम मंगलको प्राप्ति हो सकेगी, इसमें सन्देह नहीं। गोलाकार घूमनेवालेके लिए मुकामकी जगह कहीं भी नहीं है, या फिर जहां बैठा हो, वहीं है ४६६ रूपकादिको संभावना अद्वैतका नैसर्गिक प्रमाण है। उपासनाका आधार भी इसी अद्वैत-प्रामाण्यपर है। ४७० प्रवृत्तिका विरोध करनेवाली निवृत्ति वास्तविक निवृत्ति नहीं है। वह प्रवृत्तिका ही एक प्रकार है। प्रवृत्तिको जो सहज अपने-आपमें समाविष्ट कर सके, वह निवृत्ति है। ४७१ वैराग्य याने मारा हा रजोगुण। परमार्थके अन्तर्गत सारी उबाल वैराग्यकी बदौलत है। ४७२ पापके खिलाफ चार शक्तियां अपने-अपने बल के अनुसार लड़ रही हैं-(१) पुण्य, (२) भोग, (३) प्रायश्चित्त, (४) आत्मज्ञान । ४७४ सत्यके विरोधमें जो कुछ खड़ा रहेगा, वह सहज ही मिथ्या होगा। ४७४ धनुर्धारी रामने यज्ञमें विघ्न करनेवाले राक्षसोंसे ऋषियोंकी रक्षा की ; यह केवल ऐतिहासिक ही नहीं, अपितु त्रैकालिक सत्य है। For Private and Personal Use Only

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