Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विचारपोथी ३७४ 'विश्वनाथ' भगवान् का धंधा है । दीनानाथ' उसका धर्म है । मेरा कुछ नहीं है । सबकुछ मेरा है । मैं सका हूं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७५ ३७६ प्रत्यक्ष तत्त्व छोड़कर, माने हुए लोक-संग्रहके पीछे नहीं पड़ना चाहिए । ३७७, त्यागसे पापका मूल कर्जा प्रदा· हो जाता है । दानसे पापका व्याज प्रदा होता है । कर्म के नियामक : ३७८ गीता में बतलाया हुआ 'प्र-शास्त्रविहित घोर तप कौन-सा है ? - विषयासक्त संसार । ५७: ३७६ अर्थ कहता है, 'हककी रक्षा करना कर्त्तव्य है ।' धर्म कहता है, 'कर्त्तव्य करते रहना हक है ।' ३८० साधन अल्प भले ही हो, लेकिन उत्कटता उबारेगी । ३८१ (१) प्रसंग, (२) प्रारब्ध, (३) प्रज्ञा । .३८२ 'कोsहम्' के उत्तरपर कर्त्तव्यका निर्णय निर्भर है । ३८३ 'हवाका कमरा' नामका कोई अलग कमरा नहीं है । सभी For Private and Personal Use Only

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