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विचारपोथी
३७४
'विश्वनाथ' भगवान् का धंधा है । दीनानाथ' उसका
धर्म है ।
मेरा कुछ नहीं है । सबकुछ मेरा है । मैं सका हूं ।
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३७५
३७६
प्रत्यक्ष तत्त्व छोड़कर, माने हुए लोक-संग्रहके पीछे नहीं पड़ना चाहिए ।
३७७,
त्यागसे पापका मूल कर्जा प्रदा· हो जाता है । दानसे पापका व्याज प्रदा होता है ।
कर्म के नियामक :
३७८
गीता में बतलाया हुआ 'प्र-शास्त्रविहित घोर तप कौन-सा है ? - विषयासक्त संसार ।
५७:
३७६
अर्थ कहता है, 'हककी रक्षा करना कर्त्तव्य है ।' धर्म कहता है, 'कर्त्तव्य करते रहना हक है ।'
३८०
साधन अल्प भले ही हो, लेकिन उत्कटता उबारेगी । ३८१
(१) प्रसंग, (२) प्रारब्ध, (३) प्रज्ञा ।
.३८२
'कोsहम्' के उत्तरपर कर्त्तव्यका निर्णय निर्भर है ।
३८३
'हवाका कमरा' नामका कोई अलग कमरा नहीं है । सभी
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