Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६ विचारपोथी चेतनके जैसा चेतन होकर जड़ का मोह रखने, या जड़. हत हो जानेको क्या कहें ? सच्चा अर्थशास्त्र, सच्चा आरोग्यशास्त्र, सब 'सच्चे शास्त्र मोक्षानुकूल हैं। ३६८ सृष्टि याने भवगान की प्रारती। पूजा सांगोपांग हो चुकी है। हमारा नमस्कार-भर अब शेष रह गया है । ३६६ कल, आज और आगामी कलका आत्मा ही एकमात्र जोड़ है। : ३७० भगवान्के प्रेमालु स्वभावके कारण भगवान् जगत्पति । संतोंके पुरुषार्थके कारण भगवान् सत्पति । मेरी प्रार्थनाके कारण भगवान् मत्पति । ३७१ भवभूति कहता है, “फूलोंका स्थान पैरके नीचे नहीं, माथे पर है।"" सच है। लेकिन हमारे माथेपर नहीं, बल्कि वृक्ष-देवताके । . ३७२ आजतक नहीं मरा, इसलिए आइन्दा भी नहीं मरूंगा, ऐसा अनुमान न कर ! आजतक मरा नहीं हूं, इसीलिए अब आगे मरना पड़ेगा, ऐसा अनुमान कर ! यज्ञ 'इष्ट' कामधुक है । अनिष्ट काम पूरे करनेवाला नहीं। For Private and Personal Use Only

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