________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५६
विचारपोथी
चेतनके जैसा चेतन होकर जड़ का मोह रखने, या जड़. हत हो जानेको क्या कहें ?
सच्चा अर्थशास्त्र, सच्चा आरोग्यशास्त्र, सब 'सच्चे शास्त्र मोक्षानुकूल हैं।
३६८ सृष्टि याने भवगान की प्रारती। पूजा सांगोपांग हो चुकी है। हमारा नमस्कार-भर अब शेष रह गया है ।
३६६ कल, आज और आगामी कलका आत्मा ही एकमात्र जोड़ है। :
३७० भगवान्के प्रेमालु स्वभावके कारण भगवान् जगत्पति । संतोंके पुरुषार्थके कारण भगवान् सत्पति । मेरी प्रार्थनाके कारण भगवान् मत्पति ।
३७१ भवभूति कहता है, “फूलोंका स्थान पैरके नीचे नहीं, माथे पर है।"" सच है। लेकिन हमारे माथेपर नहीं, बल्कि वृक्ष-देवताके ।
. ३७२ आजतक नहीं मरा, इसलिए आइन्दा भी नहीं मरूंगा, ऐसा अनुमान न कर ! आजतक मरा नहीं हूं, इसीलिए अब आगे मरना पड़ेगा, ऐसा अनुमान कर !
यज्ञ 'इष्ट' कामधुक है । अनिष्ट काम पूरे करनेवाला नहीं।
For Private and Personal Use Only