Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी बुद्धिसे ज्ञान होता है, पर धृतिके बिना आचरणमें नहीं आ सकता। - - मर्यादाके भीतर अभिमान शोभा देता है। उपयुक्त भी है, क्योंकि अधिकृत है। ३५४ 'पत्' याने 'गिरना', इसपरसे 'पति', 'पत्नी' शब्दोंका निर्वचन श्रुति करती है। पाणिनि 'पा' याने 'पालन करना' परसे इन शब्दोंका निर्वाचन करता है । पहली प्राध्यात्मिक निरुक्ति है, दूसरी शाब्दिक व्युत्पत्ति। ३५५ जहां नारियलके समान बाहर विरक्ति और भीतर भक्ति हो, वहीं प्राप्ति होती है। ३५६ अहंता, अस्मिता और एकता स्वतःसिद्ध है। ३५७ पाँच उपासना : (१) प्रियोपासना (२) सत्योपसना (३) समोपासना (४) ज्ञानोपासना (५) शान्तोपासना ३५८ छुटपनमें जब कोई गाली देता तो उससे कहा करता, 'मेरा तुझे हुक्म है कि मुझे गाली दे !' यदि वह गाली देना छोड़ दे, तो अपना काम हो गया । यदि उसी तरह जारी रखे, तो हमें For Private and Personal Use Only

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