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विचारपोथी
'स्याद् वा न स्याद् वा।' 'अद्वैत-भक्ति '
२२३ प्रार्थनामें प्रांखें बन्द करें तो नींद लगती है, खोलें तो एकाग्रता भंग हो जाती है। इसलिए अर्धोन्मीलित दृष्टि रखनी चाहिए।
२२४
घरमें आग लगी है और 'लोग क्या कहेंगे' यह सोचकर चिल्लाता नहीं है। इसे भी लोग क्या कहेंगे?
२२५
व्यासने विष्णुसहस्रनाम लिखा। उसमें सबसे पहले-ॐकारका उच्चार किया है। ॐ विष्णु-सहस्रनामका अति संक्षिप्त रूप है।
२२६ 'अहं' आत्माका चिह्न है। 'अ-ह' याने 'न हन्यते' ऐसा मैं अर्थ करता हूं।
.... २२७ मुक्त राममें रमते हैं। मुमुक्षु राममें मरते हैं। मुमुक्षुके इस रामनामको 'उलटा जाप' कहते हैं ।
२२८ मनुष्य जब जागकर थक जाता है तब सोता है और सोकर थक जाता है तो जागता है। रजस् और तमस् ये एक-दूसरेके प्रतिफलित हैं।
२२६ गायत्री-मन्त्र व्यक्तिगत उपासना के लिए माना गया है । परन्तु 'धोमहि'-'हम ध्यान करते हैं-यह बहुवचनी पद समुदायका सूचक है। अर्थात् गायत्री-उपासना व्यक्तिके ; करनेकी है,
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