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विचारपोथी
२६३
श्रद्ध+प्रज्ञा-+-वीर्य सत्य ।
२६४ कल्याण सार्वजनिक है। वह व्यक्तिका 'निजी' नहीं हो सकता।
पहले प्रेम, फिर त्याग, अन्तमें शान्ति ।
सत्य याने सभी गुणोंका 'गुनिया' ।
२६७ ___भक्तके पास ज्ञान न होनेपर भी नम्रता होनेके कारण ज्ञान प्राप्त करना उसके लिए सहज है।
शरीर निसर्गतः जैसे-जैसे जीर्ण होता जाय वैसे-वैसे प्रज्ञाकी कला बढ़ती जानी चाहिए। और जिस क्षण शरीर छूटे उस क्षणमें प्रज्ञाकी पौरिणमा होनी चाहिए। इसे गीता शुक्लपक्षका मरण कहती है । इसके विपरीत शरीर के साथ प्रज्ञा क्षीण होते हुए मरण पाना कृष्णपक्षका मरण है ।
प्रश्न-ज्ञानेश्वरी तुम्हें कितनी प्रिय है ?
उत्तर-इतनी कि दोष दिखाना हो तो भी ज्ञानेश्वरीके ही दिखाता हूं।
२७० दंभ सूक्ष्म है । वह ज्ञातरूपसे ही रहता है, ऐसा नहीं है। अज्ञातरूपसे भी रह सकता है। बहत बार मनुष्य अनजानमें भी दंभ करता है।
२७१ 'स्वप्न क्या दिखाता है ?'-(१) सृष्टिका मिथ्यात्व ।
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