Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra विचारपोथी ३३३ बुद्धिगत ज्ञान याने 'परोक्ष' ज्ञान । वही जब इन्द्रियोंमें उतरता है तब 'अपरोक्ष' कहलाता है । www.kobatirth.org ३३४ सप्तर्षियों की आकृति में काश्मीर और हिमालयका भाग मुझे दिखाई देता है | यह भारतका उपलक्षरण समझकर ऋषियोंके स्मरण के साथ 'दुर्लभं भारते जन्म' इस ऋषि-वचनका मैं स्मरण करता हूं । ब्रह्म ३३५ ज्ञानावस्था में भी भेदकी कल्पना करना याने रजोगुणकी चरम सीमा है । अचिन्त्य चिन्त्य ३३.६ जो बलवान वह बालक | ऊंचे-से ऊंचा ध्येय भी जिसे अशक्य नहीं लगता वह बालक । अव्यक्त Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३७ I व्यक्त ५१ T मूर्त अमूर्त ३३८ जो ईश्वरका क्रोध जानता है वह क्रोध-रहित होता है। जो ईश्वरकी क्षमा जानता है वह क्षमावान् होता है । For Private and Personal Use Only

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