Book Title: Vichar Pothi
Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ विचारपोथी के कारण उनपर जो प्रभाव पड़ा-सा प्रतीत होता है, वह मृगजल है। मृगजल दूरसे ही देखना चाहिए। ३१८ रोज़की नींद मृत्युका 'पूर्वप्रयोग' है, ऐसा समझकर शास्त्र में बताई हुई प्रयाण-पद्धतिका नींदके वक्त अभ्यास करें। सामनेके पेड़के पत्तोंमें जो वेदमंत्र पढ़ सकता है उसने वेदको समझा। ३२० पहले आत्माको कोई देख नहीं सकता। अगर देख सका भी तो वह वाक्-शक्ति खो बैठता है-बोल नहीं सकता। यदि बोलनेवाला मिल भी जाय, तो सुननेवाला नहीं मिलता। और कुतूहलवश सुननेवाला भी प्राप्त हो जाय, तो भी समझनेके नामसे शून्य ही होता है। ३२१ ज्ञाता पुरुषके लिए इस संसारमें जीना भी दूभर है और मरना भी। इसलिए वह केवल शरीरसे जीकर मनसे मरता है। ३२२ प्रेम और वैराग्यमें सामंजस्य करना विवेकका काम है। ३२३ जागृतिमें मनकी तीन अवस्थाओंका मैं अनुभव करता हूं : (१) भाविकता, (२) नैतिकता, (३) शून्यता। ३२४ 'असंभूति'-कुवासनाओंकी अनुत्पत्ति और विनाश । 'संभूति'-सद्भावनाओंकी उत्पत्ति और विकास । For Private and Personal Use Only

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